NewsDesk: भारत के साथ – साथ दुनिया भर में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्योहार मनाया गया. दिल्ली के जामा मस्जिद में लोगों ने सोशल डिस्शटेंस बना कर लोगों ने शनिवार सुबह नमाज अदा की. दारुल उलूम देवबंद द्वारा बताये गए निर्देशों का पालन कर लोग ने घरों में अदा की नमाज.
झारखण्ड में भी लोगो ने घरों में ईद-उल-अजहा की नमाज़ अदा की, सीएम हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा “सभी देश और झारखण्डवासियों को ईद उल-अज़हा की हार्दिक शुभकामनाएं। सभी से मेरी अपील है कोरोना के इस संक्रमण काल में पर्व नियमों का पालन कर ही मनायें। आपस मे दूरियां बनाएं, मगर दिलों को जोड़े रखें।”
क्यों मनाई जाती है ईद (ईद-उल-अजहा)
इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा का विशेष महत्व है। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक खुदा ने हजरत इब्राहिम से ली थी परीक्षा अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा की राह में कुर्बान करने को कहा था , तब खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को कुंबे यानि भेड़ से बदल दिया , तब से लेकर आज तक मुस्लमान इस बलिदान को मना रहे हैं.
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने की 10 तारीख को ईद उल अजहा का त्योहार मनाया जाता है। ईद उल फितर के करीब 70 दिनों के बाद यह त्योहार मनाया जाता है। मीठी ईद के बाद यह इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है। यह फर्ज-ए-कुर्बानी का दिन है। इस त्योहार पर गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीन हिस्सों में खुद के लिए एक हिस्सा रखा जाता है, एक हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों को बांटा जाता है और एक हिस्सा गरीब और जरूरतमंदों को बांट दिया जाता है।
इसके जरिए पैगाम दिया जाता है कि अपने दिल की करीब चीज भी दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर दी जाती है। इस त्योहार को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद अल्लाह के हुक्म के साथ इंसानों की जगह जानवरों की कुर्बानी देने का सिलसिला शुरू किया गया।