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Jharkhand OBC Reservation: झारखंड के साथ ही अन्याय क्यूँ? कर्नाटक में भाजपा सरकार इसलिए गवर्नर को आरक्षण बढ़ाने में दिक्कत नहीं

Jharkhand OBC Reservation: झारखंड में ओबीसी और अन्य श्रेणियों के लिए आरक्षण की पूर्व निर्धारित सीमा नहीं बढ़ेगी। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने झारखंड में ओबीसी सहित अन्य श्रेणी के आरक्षण की सीमा बढ़ाने से संबंधित विधेयक ‘झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022’ को राज्य सरकार को वापस लौटा दिया है।

राज्यपाल ने विधेयक पर भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सलाह पर निर्णय लेते हुए उसे राज्य सरकार को वापस लौटा दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अटॉर्नी जनरल के मंतव्य को भी साथ भेजते हुए उसकी समीक्षा करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है।

Jharkhand OBC Reservation: अटॉर्नी जनरल ने विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बताया

अटॉर्नी जनरल ने अपने मंतव्य में आरक्षण विधेयक को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत बताया है। उनके अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में जातिगत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित कर दी है, जबकि उक्त विधेयक में इस सीमा को बढ़ाकर 67 प्रतिशत करने प्रस्ताव था। उन्होंने अपने मंतव्य में आरक्षण से संबंधित अन्य न्यायादेशों का भी जिक्र किया है।

OBC Reservation: भाजपा शासित प्रदेश में विधेयक होते है पारित, विपक्षी राज्यों उसी विधेयक पर बदल जाता है नियम-कानून

बता दें कि राज्य सरकार ने यह विधेयक तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस के समय ही स्वीकृति के लिए राजभवन भेजा था। उन्होंने ही उसपर अटॉर्नी जनरल से मंतव्य मांगा था। इस बीच उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। अब अटॉर्नी जनरल के मंतव्य मिलने के बाद राज्यपाल ने उक्त विधेयक को वापस लौटा दिया है।

Jharkhand OBC Reservation: सरकार ने स्थानीय नीति संबंधी विधेयक के साथ आरक्षण विधेयक को भेजा था राजभवन

राज्य सरकार ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक के साथ ही आरक्षण सीमा बढ़ाने से संबंधित विधेयक को विधानसभा से पारित कराकर राज्यपाल के अनुमोदन के लिए राजभवन भेजा था। साथ ही दोनों विधेयकों को राष्ट्रपति को भेजने का प्रस्ताव दिया गया था, ताकि दोनों विधेयकों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जा सके।

रमेश बैस ने लौटा दिया था स्थानीय नीति संबंधी विधेयक

बता दें कि तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक को पहले ही यह कहते हुए राज्य सरकार को वापस लौटा दिया था कि राज्य विधानमंडल को नियोजन से संबंधित निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। साथ ही यह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध है।