

एक यूनीफॉर्म पहने युवक बाइक से तेज़ी से निकलता है, पीठ पर डिलीवरी बैग, हाथ में मोबाइल… आप सोचेंगे – “सिर्फ एक और डिलीवरी बॉय!”
लेकिन ज़रा रुकिए… इस डिलीवरी बॉय ने सिर्फ खाना नहीं पहुँचाया, उसने सपनों की डिलीवरी भी की है। रांची की सड़कों पर दौड़ता ये लड़का अब अफसर बनने जा रहा है। नाम है राजेश रजक। जी हाँ, वही राजेश जिसने JPSC की प्रतिष्ठित परीक्षा पास की है।
राजेश का जीवन मध्यमवर्गीय संघर्षों से भी नीचे की पायदान से शुरू हुआ। हज़ारीबाग ज़िले के बरकट्ठा गाँव में जन्मे राजेश के पिता नहीं रहे। मां एक सरकारी स्कूल में रसोइया का काम करती हैं और भाई मुंबई में दिहाड़ी मज़दूर है। घर में किताबों से ज़्यादा तंगी और उम्मीदों से ज़्यादा भूख थी। लेकिन राजेश ने कभी हालात को खुद पर हावी नहीं होने दिया। दिन में डिलीवरी बॉय की नौकरी, रात में किताबों के पन्नों से लड़ाई… यही उनकी दिनचर्या बन गई।
राजेश की सफलता सिर्फ एक इंसान की नहीं, पूरे सिस्टम को आइना दिखाने वाली कहानी है। JPSC जैसी कठिन परीक्षा में कामयाबी उस इंसान को मिली है, जिसने कोचिंग, संसाधन या हाई-प्रोफाइल गाइडेंस के बिना सिर्फ और सिर्फ मेहनत को अपना साथी बनाया। एक तरफ बड़े शहरों में लाखों खर्च करने वाले छात्र हैं, वहीं दूसरी तरफ राजेश हैं – जो फूड डिलीवरी के टिप से किताबें खरीदते थे। ये कहानी सिर्फ परीक्षा पास करने की नहीं, संघर्ष के खिलाफ खड़े होने की कहानी है – उस संघर्ष की जो जाति, वर्ग, गरीबी और व्यवस्था की लकीरों से पैदा होता है।




