रामगढ़/गोला: झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) अपने पिता और झारखंड आंदोलन के मसीहा दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद अपने पैतृक गांव नेमरा में रहकर 13 दिनों तक राज्य का शासन संभालेंगे। अपने पिता के पारंपरिक क्रियाकर्म और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने के दौरान मुख्यमंत्री गांव में ही एक अस्थायी प्रशासनिक कार्यालय से कामकाज जारी रखेंगे। इस निर्णय के पीछे भावनात्मक जुड़ाव के साथ-साथ कार्य की निरंतरता बनाए रखना भी प्रमुख कारण रहा। मुख्यमंत्री ने खुद सोशल मीडिया पर एक मार्मिक पोस्ट साझा करते हुए लिखा, “आज नेमरा में सुबह का सूरज भी उदास था… बाबा, आपके सपनों को पूरा करेगा आपका यह बेटा।”
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मौजूदगी को देखते हुए नेमरा गांव में सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं। पुलिस बल और प्रशासनिक अधिकारी गांव में डटे हुए हैं और राज्य सरकार के सुचारू संचालन हेतु अस्थायी कार्यालय की स्थापना की जा रही है। बीते दो दिनों से इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क की समस्या को देखते हुए तेजी से नेटवर्क व्यवस्था बहाल की जा रही है। बीएसएनएल के टावर पर जिओ का सेटअप लगाया जा रहा है ताकि मुख्यमंत्री और प्रशासनिक अमला आसानी से संपर्क बनाए रख सके और राज्य से जुड़ी महत्वपूर्ण गतिविधियों पर नियंत्रण बना रहे।
मुख्यमंत्री के साथ उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, भाई बसंत सोरेन और अन्य परिजन भी नेमरा गांव में पारंपरिक विधि-विधान से शिबू सोरेन के क्रियाकर्म में भाग लेंगे। दिवंगत नेता के सम्मान में आयोजित अनुष्ठान गांव के मरांग बुरु देवता की पूजा के साथ संपन्न होगा। पूरे नेमरा गांव में इन दिनों शोक और श्रद्धा का वातावरण है। मंगलवार को दिशोम गुरु का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। बुधवार को मुख्यमंत्री ने अपने पिता को याद करते हुए कहा, “मैंने जो भी वादा किया, उसे निभाऊंगा… झारखंड के लोगों की सेवा में कोई कमी नहीं आने दूंगा।”
रामगढ़ जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री की कार्य प्रणाली में किसी प्रकार की बाधा न आए, इसके लिए अपनी तैयारियां तेज़ कर दी हैं। आवश्यक प्रशासनिक समन्वय और कार्यवाहियों के संचालन के लिए गांव में ही केंद्रित व्यवस्था की जा रही है। यह पहली बार है जब झारखंड का प्रशासनिक संचालन राजधानी से बाहर किसी गांव से हो रहा है। यह न केवल एक अनोखा प्रशासनिक निर्णय है बल्कि अपने पिता के प्रति श्रद्धा और राज्य के प्रति कर्तव्य के अद्वितीय संतुलन का उदाहरण भी है। आने वाले 13 दिनों तक नेमरा गांव न केवल शोक का स्थल रहेगा, बल्कि पूरे राज्य की निगाहें भी इसी गांव पर टिकी रहेंगी।