

Ghatshila By-Election : झारखंड की राजनीति इन दिनों घाटशिला उपचुनाव के रण में उलझी हुई है। दिलचस्प बात यह है कि इस बार मुकाबला सिर्फ दो दलों — बीजेपी और झामुमो — के बीच नहीं, बल्कि दो राजनीतिक घरानों के वारिसों के बीच भी है। बीजेपी ने चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को मैदान में उतारा है, जबकि झामुमो ने अपने दिवंगत नेता रामदास सोरेन के बेटे सोमेश सोरेन पर भरोसा जताया है। ऐसे में जनता के बीच यह सवाल तैर रहा है कि आखिर घाटशिला की जनता किसके बेटे को ताज पहनाएगी? यह चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि सियासी वंश की साख का भी इम्तिहान बनने जा रहा है।
घाटशिला की भूमि आदिवासी अस्मिता की धारा में डूबी हुई है। बीजेपी एक बार फिर उसी भावनात्मक मुद्दे को भुनाने की रणनीति बना रही है — ‘आदिवासी अस्मिता खतरे में है’। पार्टी बंग्लादेशी घुसपैठ, कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाने की तैयारी में है। साथ ही सूर्या हांसदा एनकाउंटर केस को भी राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी इस केस के जरिये सरकार पर आदिवासियों के दमन का आरोप लगाने की योजना बना रही है। पार्टी का नारा साफ है — “अब और नहीं, अन्याय का अंत जरूरी है।” दूसरी ओर मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन भी विपक्ष के हमलों का जवाब देने के लिए तैयार दिख रहे हैं, जो संकेत देता है कि इस बार घाटशिला की लड़ाई बेहद तीखी और अप्रत्याशित होगी।
वहीं, झामुमो अपने अभियान में ‘सहानुभूति और विकास’ के दोहरे फार्मूले पर काम कर रही है। पार्टी दिवंगत नेता रामदास सोरेन की विरासत को जनता के दिलों में फिर से जीवित करने की कोशिश में है। सोमेश सोरेन जनता के बीच अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेकर उतरेंगे। झामुमो ‘मंइयां सम्मान योजना’, शिक्षा, रोजगार और हेमंत सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को मुख्य मुद्दा बनाएगी। पार्टी का लक्ष्य स्पष्ट है — जनता को यह संदेश देना कि “झामुमो परिवार जनता का परिवार है।” सहानुभूति की इस लहर के साथ-साथ पार्टी अपने परंपरागत आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट रखने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो घाटशिला में 46% आदिवासी और 45% ओबीसी वोटर निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं। बीजेपी आजसू के सहयोग से कुड़मी और ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश में है, जबकि झामुमो अपने मजबूत जनाधार पर भरोसा जता रही है। यह चुनाव न तो किसी एक पार्टी के लिए आसान है, न ही पूर्वानुमान योग्य। इस बार की जंग में मुद्दे, भावनाएं, और राजनीतिक रणनीतियां — तीनों का संगम दिखने वाला है। अब देखना यह होगा कि घाटशिला की जनता किस सोरेन के सिर पर ‘विजय का मुकुट’ सजाती है — वंश की विरासत या जनता की उम्मीदों का नायक?




