बिहार में खाता खोलने के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने अब झारखंड में दस्तक दी है। झारखंड में मुसलमानों की आबादी करीब 15 फीसदी है। इस बात को ध्यान में रख कर ओवैसी ने अब झारखंड का रुख किया है। मुस्लिम हितों की राजनीति करने वाले ओवैसी ने अपनी पार्टी एआइएमआइएम को महाराष्ट्र और बिहार तक पहुंचा दिया है। अब झारखंड में पांव जमाने की कोशिश में हैं।
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ओवैसी की पार्टी पहली बार झारखंड में चुनाव लड़ रही है। अभी तक झारखंड में मुस्लिम वोट झामुमो, झाविमो, कांग्रेस और राजद के बीच बंटते रहे हैं। ओवैसी इन मतों का बिखराव रोकना चाहते हैं। उन्होंने खुद को मुसलमानों का सच्चा हितैषी बता कर अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश तेज कर दी है। ओवैसी ने रांची में 25 सितम्बर को एक सभा की थी और उसमें ही एलान किया था कि उनकी पार्टी झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ेंगी। ओवैसी की पार्टी के खड़ा होने से महागठबंधन के चुनावी समीकरण पर असर पड़ने की संभावना है।
मुस्लिम वोटों पर नजर:
वैसे तो उनकी नजर अल्पसंख्यकों के थोक वोट पर है लेकिन उन्होंने दो हिन्दू उम्मीदवारों को भी चुनाव मैदान में उतारा है। ओवैसी मुस्लिम राजनीति का कट्टर चेहरा हैं। इस लिए उनकी यह पहल किसी तरह झारखंड में दाखिले की कोशिश मानी जा रही है। झारखंड में मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी पाकुड़ जिले में है। पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित पाकुड़ में 35.8 फीसदी मुसलमान बसते हैं। लेकिन ओवैसी ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है। पाकुड़ सीट पर कांग्रेस के आलमगीर आलम का कब्जा है। ओवैसी की चुनौती को हल्के में नहीं लिया जा सकता। बिहार विधानसभा की किशनगंज सीट पर हाल ही में उपचुनाव हुआ था। ओवैसी ने भाजपा-जदयू और कांग्रेस को चौंकाते हुए यह सीट जीत ली थी। कांग्रेस अपनी जीती हुई सीट नहीं बचा सकी थी। बिहार के किशनगंज में 70 फीसदी वोट मुसलमानों के हैं। अगर ओवेसी ने बिहार की तरह झारखंड में भी कमाल कर दिया तो क्षेत्रीय दलों की हालत पतली हो जाएगी।
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झारखंड में केवल 7 मुसलमान ही बने हैं विधायक:
झारखंड में अब तीन विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कुल मिला कर 7 मुसलमान ही विधायक बन पाये हैं। 2005 में दो और 2009 में तीन मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने थे। 2014 में भी केवल दो सीटों (पाकुड़ और जामताड़ा) पर मुसलमान उम्मीदवार विधानसभा के लिए चुने गये थे। 15 फीसदी आबादी के हिसाब से ये नुमाइंदगी बहुत कम है। ओवैसी झारखंड के मुसलमानों को ये समझा रहे हैं कि उन्हें आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद ने उनका सिर्फ राजनीतिक इस्तेमाल किया है। ओवैसी एआइएमआइएम को मुसलमानों का असली हमदर्द बता कर वोटों की गोलबंदी कर रहे हैं। ओवैसी के चुनाव लड़ने से महागठबंधन के दलों के नुकसान की आशंका जतायी जा रही है। यहां के मुस्लिम मतदाता झामुमो, कांग्रेस, झाविमो और राजद को वोट करते रहे हैं। ओवैसी की पार्टी का झारखंड में एंट्री करने के बाद क्या कमाल कर पाती है ये 23 दिसंबर को पता चलेगा