
Jharkhand News : सदर अनुमंडल पदाधिकारी ने उपायुक्त को सौंपी जांच रिपोर्ट, वायरल वीडियो में बच्चे की उम्र को लेकर भी हुआ बड़ा खुलासा
चाईबासा सदर अस्पताल से मृत बच्चे के शव को थैले में ले जाने के वायरल वीडियो मामले की प्रशासनिक जांच पूरी हो गई है। रिपोर्ट में एम्बुलेंस की कमी, स्टाफ की कमी और परिजनों की मजबूरी से जुड़े कई गंभीर तथ्य सामने आए हैं।
Jharkhand News : पश्चिमी सिंहभूम जिले के सदर अस्पताल चाईबासा से जुड़ा एक संवेदनशील और झकझोर देने वाला मामला सामने आया है, जिसमें एम्बुलेंस की अनुपलब्धता के कारण एक मृत बच्चे के शव को उसके परिजनों द्वारा थैले में ले जाना पड़ा। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद जिला प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए थे। अब सदर अनुमंडल पदाधिकारी, चाईबासा द्वारा की गई जांच पूरी कर ली गई है और इसकी रिपोर्ट जिला दण्डाधिकारी-सह-उपायुक्त, पश्चिमी सिंहभूम को सौंप दी गई है।
जांच रिपोर्ट के अनुसार मृत बच्चे की पहचान कृष्ण चातोम्बा के रूप में हुई है, जो ग्राम बालजोड़ी, नोवामुण्डी निवासी डिम्बा चातोम्बा का पुत्र था। वायरल वीडियो में बच्चे की उम्र चार वर्ष बताई जा रही थी, लेकिन जांच में यह तथ्यात्मक रूप से गलत पाया गया। प्रशासनिक जांच में स्पष्ट हुआ कि मृत बच्चा मात्र चार माह का था, जिससे सोशल मीडिया पर फैली कई भ्रामक जानकारियों पर भी विराम लगा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 18 दिसंबर 2025 की शाम करीब 5:15 बजे बच्चे को बुखार और लूज मोशन की शिकायत के साथ सदर अस्पताल चाईबासा में भर्ती कराया गया था। बच्चे को पीडियाट्रिक वार्ड में रखा गया, जहां उपचार के दौरान जांच में वह मलेरिया पॉजिटिव पाया गया। चिकित्सकों ने बेहतर इलाज के लिए बच्चे को एमजीएम अस्पताल, जमशेदपुर रेफर करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बच्चे के पिता ने सदर अस्पताल में ही इलाज जारी रखने की इच्छा जताई।
इलाज के दौरान 19 दिसंबर 2025 को अपराह्न 1:15 बजे बच्चे की मृत्यु हो गई। इसके बाद अस्पताल प्रशासन द्वारा शव वाहन की व्यवस्था के लिए प्रयास किए गए, लेकिन उस समय उपलब्ध दो शव वाहनों में से एक मनोहरपुर में था, जबकि दूसरा दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण उपयोग योग्य नहीं था। परिजनों को शव वाहन आने तक प्रतीक्षा करने की सूचना दी गई थी।
जांच रिपोर्ट में उल्लेख है कि शव वाहन करीब अपराह्न 4:40 बजे अस्पताल पहुंचा, लेकिन तब तक बच्चे के पिता शव को लेकर अस्पताल से जा चुके थे। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि उस दिन पीडियाट्रिक वार्ड में कुल 33 बच्चे भर्ती थे और केवल दो नर्स ही तैनात थीं। अन्य मरीजों की देखभाल में व्यस्तता के कारण यह स्पष्ट नहीं हो सका कि बच्चे के पिता किस समय शव लेकर अस्पताल से बाहर निकल गए।
एक अहम तथ्य यह भी सामने आया कि बच्चे के पिता के पास मोबाइल फोन नहीं था, जिसके कारण उनसे संपर्क स्थापित करना संभव नहीं हो सका। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि परिजन कुछ समय और प्रतीक्षा करते, तो शव वाहन उपलब्ध हो गया होता, लेकिन हड़बड़ी और असहाय स्थिति में पिता द्वारा शव को थैले में ले जाने का निर्णय लिया गया।
प्रशासन ने इस घटना को गंभीर मानते हुए स्वीकार किया है कि शव वाहन की कमी और संसाधनों की सीमित उपलब्धता एक बड़ी समस्या है। भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए क्षतिग्रस्त शव वाहन की शीघ्र मरम्मत कराने और व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने का प्रस्ताव दिया गया है। जिला प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे, ताकि किसी भी परिजन को ऐसी पीड़ादायक स्थिति का सामना न करना पड़े।
