
Koderma: झारखंड के कोडरमा जिले से एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है, जो न केवल आदिम जनजाति समुदाय के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए मिसाल बन रही है। जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर डोमचांच प्रखंड के मसनोडीह पंचायत अंतर्गत जियोरायडीह गांव की रहने वाली मालीन विरहोरनी ने इतिहास रचते हुए बिरहोर समुदाय की पहली मैट्रिक पास महिला बनने का गौरव हासिल किया है।
जियोरायडीह गांव में आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के करीब 200 लोग निवास करते हैं। यह इलाका आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के मामले में पिछड़ा हुआ माना जाता है। ऐसे में इस समुदाय की किसी महिला का मैट्रिक परीक्षा पास करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
गरीबी और संघर्ष के बीच शिक्षा की राह
मालीन विरहोरनी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। सीमित संसाधन, गरीबी और सामाजिक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने पढ़ाई को कभी नहीं छोड़ा। उनका सपना था कि वह पढ़-लिखकर सरकारी शिक्षक बनें और अपने समाज के बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ें। हालांकि कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वे आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं, लेकिन मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।
आंगनवाड़ी सेविका बनकर समाज सेवा
वर्तमान समय में मालीन विरहोरनी अपने गांव के आंगनवाड़ी केंद्र में आंगनवाड़ी सेविका के रूप में कार्यरत हैं। वे न सिर्फ नौनिहाल बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा दे रही हैं, बल्कि उनके पोषण, स्वास्थ्य और संस्कारों पर भी विशेष ध्यान दे रही हैं। शिक्षा से वंचित क्षेत्र में मालिन की यह भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है।

मालिन की जुबानी
मालीन कहती हैं- “मैं आगे पढ़ना चाहती थी और शिक्षक बनना चाहती थी, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर थी। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैट्रिक पास कर मैंने यह साबित किया कि अगर इरादा मजबूत हो, तो कठिन हालात भी रास्ता नहीं रोक सकते।”

गांव और समाज में बढ़ी शिक्षा के प्रति जागरूकता
मालीन विरहोरनी की इस सफलता से पूरे जियोरायडीह गांव में खुशी का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी उपलब्धि ने बिरहोर समुदाय में शिक्षा के प्रति नई जागरूकता पैदा की है। अब अन्य बच्चे और उनके अभिभावक भी पढ़ाई को लेकर गंभीर हो रहे हैं और बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

बदलते झारखंड की तस्वीर
मालीन विरहोरनी आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि बिरहोर समाज के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन चुकी हैं। उनकी कहानी यह दर्शाती है कि बदलते झारखंड में अब आदिम जनजाति समुदाय की बेटियाँ भी शिक्षा के माध्यम से अपने भविष्य को नई दिशा दे रही हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत कर रही हैं।
