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Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations
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दिशोम जाहेर करनडीह में संताली Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations

Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations
Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations

Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations : आदिवासी संस्कृति, भाषा और अस्मिता का भव्य उत्सव

जमशेदपुर के करनडीह स्थित दिशोम जाहेर में आयोजित 22वें संताली Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations में राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री की गरिमामयी उपस्थिति के साथ आदिवासी संस्कृति, भाषा और परंपरा का ऐतिहासिक उत्सव देखने को मिला।
दिशोम जाहेर करनडीह में संताली Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations 1

जमशेदपुर के करनडीह स्थित दिशोम जाहेर में आज संताली समाज के लिए ऐतिहासिक और गौरवपूर्ण क्षण देखने को मिले। 22वें संताली Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations वर्ष समारोह का आयोजन पूरे पारंपरिक वैभव और सांस्कृतिक गरिमा के साथ किया गया। इस अवसर पर देश और राज्य के शीर्ष नेतृत्व की उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी ऐतिहासिक बना दिया।

इस भव्य समारोह में द्रौपदी मुर्मु, संतोष कुमार गंगवार और हेमन्त सोरेन ने शिरकत की। तीनों अतिथियों ने करनडीह जाहेरथान में आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना कर संताली समाज की आस्था, प्रकृति-पूजन और सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मान दिया।

दिशोम जाहेर करनडीह में संताली Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations 2

जाहेरथान परिसर में पारंपरिक ढोल-नगाड़ों की गूंज, लोकनृत्यों की जीवंत प्रस्तुतियाँ और पारंपरिक वेशभूषा में सजे आदिवासी कलाकारों ने पूरे वातावरण को सांस्कृतिक ऊर्जा से भर दिया। यह आयोजन केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह आदिवासी समाज की अस्मिता, पहचान और ऐतिहासिक संघर्षों की जीवंत झलक भी था।

समारोह के दौरान Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations के आविष्कारक गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। वक्ताओं ने अपने संबोधनों में कहा कि ओलचिकी लिपि केवल संताली भाषा को लिखने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की बौद्धिक चेतना, ज्ञान-परंपरा और आत्मसम्मान का प्रतीक है।

ओलचिकी लिपि के शताब्दी वर्ष समारोह ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि मातृभाषा में शिक्षा, साहित्य और प्रशासनिक कार्य न केवल सांस्कृतिक संरक्षण के लिए आवश्यक हैं, बल्कि यह सामाजिक सशक्तिकरण का भी मजबूत आधार बन सकते हैं। इस अवसर पर संताली भाषा के प्रचार-प्रसार, शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में इसके समावेश और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया गया।

दिशोम जाहेर करनडीह में संताली Parasi Maha and Olchiki Lipi Centenary Celebrations 3

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि झारखंड की पहचान उसकी आदिवासी संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं से जुड़ी है। राज्य सरकार इन मूल्यों के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है। वहीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अपने संदेश में कहा कि आदिवासी भाषाएँ और संस्कृतियाँ भारत की विविधता की आत्मा हैं, जिनका सम्मान और संरक्षण पूरे देश की जिम्मेदारी है।

यह समारोह संताली समाज के लिए आत्मगौरव का प्रतीक बनकर उभरा, वहीं पूरे देश को यह संदेश भी दिया कि विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक जड़ों को सहेजना उतना ही जरूरी है। दिशोम जाहेर करनडीह में आयोजित यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी भाषा, लिपि और परंपराओं से जुड़ने की प्रेरणा बन गया।