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JHARKHAND NEWS : नियोजन नीति का विरोध नहीं 60-40 युवा भविष्य के साथ खेलने का कुछ राजनीतिक दलों का षड्यंत्र है

Bharti Warish


JHARKHAND NEWS : एक ओर झारखंड सरकार के द्वारा नियोजन नीति में संशोधन कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की जा रही है।

वहीं दूसरी ओर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा साजिश कर पत्रों को भड़का कर सरकार के द्वारा किए गए संशोधन से संतुष्ट नहीं दिखा रहे हैं. नियोजन नीति में झारखंड के मूलवासियों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए छात्रों ने ट्विटर पर अभियान चलाया। जिसमें लाखों छात्र जुड़े. छात्र खतियान आधारित नियोजन नीति की मांग कर रहे. नियोजन नीति में 60 : 40 पर असहमति।

नेता देवेंद्र नाथ महतो का मानना है कि सरकार ने नियोजन नीति में संशोधन कर झारखंड के युवाओं के साथ अन्याय किया है।जब तक स्थानीय नीति तय नहीं होती है तब तक इस नियोजन नीति को बनाने का कोई मतलब नहीं है।उन्होंने हेमंत सरकार के नियोजन नीति में 60:40 के अनुपात पर असहमति जताई। इस नीति से बाहरी लोगों का प्रवेश नौकरियों होगा। ट्विटर अभियान में बड़ी संख्या में राज्यभर से जुड़े युवाओं ने अपनी अपनी बात रखी।सरकार के फैसले का विरोध किया. छात्रों का मानना है कि सरकार सिर्फ नौकरी के नाम पर युवाओं को छलने का काम करती रही है।इस वजह से आज भी युवा सड़कों पर हैं. लंबे समय से नियुक्ति प्रक्रिया लटकी हुई है. सरकार की नीयत साफ नहीं है।


नीति स्पष्ट नहीं होने से युवा परेशान: झारखंड में नियोजन नीति के झमेल में यहां के युवा फंसते रहे हैं। राज्य गठन के बाद से अब तक तीन बार नियोजन नीति बन चुकी है। जब जिसकी सरकारें रही नियोजन नीति अपने हिसाब से बनती रही. सबसे पहले राज्य गठन के बाद बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी। सरकार ने राज्य में स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की। मगर झारखंड हाईकोर्ट से इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद 2016 में रघुवर दास के नेतृत्व में बनी. सरकार नियोजन नीति तो बनाया लेकिन इसमें राज्य के 13 जिलों को अनुसूचित क्षेत्र और 11 जिलों को सामान्य श्रेणी का प्रावधान कर विवादित बना दिया. जिसका खामियाजा यहां के कान भी रहाते रहे हैं कानूनी लड़ाई के बाद।


यह नियोजन नीति भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गई. अंत में सरकार को इसे भी रद्द करना पड़ा। 2019 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी यूपीए की सरकार ने अपने घोषणा पत्र के अनुरूप नियोजन नीति बनाने की प्रक्रिया शुरू की। जो 2021 में तैयार होने के बाद इसे लागू किया गया। हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. इस वजह से एक दर्जन से अधिक नियुक्ति प्रक्रिया सरकार की लटक गई. छात्र एक बार फिर सड़कों पर आ गए। सरकार ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है। जिसके तहत एक बार फिर हाल ही में कैबिनेट के द्वारा नियोजन नीति में मैट्रिक इंटर पास की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है। इसके अलावे हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी को क्षेत्रीय भाषाओं के साथ साथ जोड़ा गया है। मगर स्थानीय नीति का मुद्दा आज भी स्पष्ट नहीं हो पाया है. ऐसे में छात्र आक्रोशित हैं। और इसे बताने में कुछ राजनीतिक दल के नेता अहम भूमिका निभा रहे हैं।


आजसू पार्टी के छात्र संघ से जुड़े रहे गौतम सिंह के मुताबिक सरकारें हमेशा प्रगतिशील दिखती हैं, आगे बढ़ती दिखती हैं, ठोकर खाकर गिरती हैं। फिर उठ आगे बढ़ने की बजाय सरकार यूटर्न लेकर पीछे चलने लगती है। युवाओं की उम्र बढ़ रही है। हेमंत सरकार विरोधी नीति भी बन रही।


कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि राज्य सरकार युवाओं और उसके रोजगार के मुद्दे पर संवेदनशील रही है। फिलहाल राजनीतिक षडयंत्र के तहत सारा तमाशा हो रहा है, जिन्होंने आज तक राज्य के युवाओं के लिए कुछ नहीं किया, वे अभी राजनीतिक रोटी सेंक में लगे हैं। युवाओं को किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। बाबूलाल मरांडी सहित अन्य भाजपाई नेताओं की दुनिया ट्विटर पर ही चलती है। वे अपनी पार्टी के लिए फ्यूज बल्ब साबित हो चुके हैं। उससे रोशनी की उम्मीद बेमानी है।


प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों क कहना है कि युवाओं की राय के आधार पर सरकार ने जो नियोजन नीति बनायी है, वह उचित नहीं है। सरकार की नयी नियोजन नीति की वजह से उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। यही वजह है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अभ्यर्थियों की मांग है। कि राज्य सरकार खतियान आधारित नियोजन नीति लागू करे ।


उल्लेखनीय है कि झारखंड के विभिन्न जिलों में खतियान आधारित नियोजन नीति समर्थक युवा राज्य सरकार की ओर से युवाओं की राय लेकर बनायी नियोजन नीति का विरोध कर रहे हैं। अब इसमें कोई संशय नहीं कि नियोजन निति का जो विरोध हो रहा है उसके पीछे कुछ राजनीतिक दलों का हाथ है। ये राजनीतिक दल न केवल नियोजन निति की वापसी की मांग कर रहे हैं, बल्कि झूठ का सहारा लेकर युवाओं को बरगला रहे हैं।


बीजेपी समेत अन्य विपक्षी दल इस के विरोध में जिस तरह खुलकर खड़े हो गए हैं उससे इस संदेह को बल युवाओं को बहका कर सड़को पर उतारा।