

जब लगातार 4 बार एक ही परीक्षा में हार मिले… जब सब कहते रहें “अब छोड़ दे”, “तेरे बस की बात नहीं”, और जब परिवार, नौकरी, और समाज का दबाव कंधों पर हो — तब कोई भी टूट सकता है। लेकिन झारखंड के बेरमो की बेटी कुमारी स्वाति ने हार को मंज़िल तक की सीढ़ी बना दिया। एक साधारण शिक्षक की बेटी होने के बावजूद, उन्होंने असाधारण जज़्बा दिखाया और 11वीं JPSC परीक्षा में सफलता की ऊँचाई छू ली। उनकी कहानी सिर्फ एक परीक्षा पास करने की नहीं है — यह कहानी है संघर्ष, धैर्य और आत्मविश्वास से लड़ी गई एक जंग की।
कुमारी स्वाति ने भौतिकी विषय में स्नातक की पढ़ाई सेंट कोलंबा कॉलेज, हजारीबाग से की और फिर विनोबा भावे विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। बचपन से ही उन्होंने शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे ज़िंदगी को बेहतर बनाने का रास्ता माना। जब उन्होंने झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की परीक्षा देने का निश्चय किया, तब शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि यह रास्ता इतना आसान नहीं होगा। 7वीं से लेकर 10वीं JPSC तक, हर बार वो मेरिट से बाहर रहीं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि हर असफलता को एक सीख की तरह लिया।
एक तरफ सरकार की कठिन परीक्षा की तैयारी, और दूसरी ओर नौकरी — भारत के महालेखापरीक्षक (CAG) कार्यालय में ऑडिटर के पद पर कार्य करते हुए स्वाति ने वो कर दिखाया जो असंभव सा लगता है। दिनभर सरकारी कामकाज और फिर रातभर किताबों के साथ संघर्ष, यह एक आसान कहानी नहीं थी। लेकिन कुमारी स्वाति ने साबित कर दिया कि यदि इरादे पक्के हों, तो कोई भी व्यवधान मंज़िल का रास्ता नहीं रोक सकता। आज जब लाखों युवा किसी सरकारी नौकरी की तैयारी में तनाव झेल रहे हैं, स्वाति का यह संतुलन बनाना एक सीख है कि सपनों का पीछा करना कभी बंद नहीं करना चाहिए।
और फिर आई वो सुबह, जिसका उन्होंने वर्षों से इंतजार किया था। 11वीं JPSC परीक्षा में 127वीं रैंक के साथ उन्होंने झारखंड शिक्षा सेवा में अपना स्थान पक्का कर लिया। यह सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि उस संघर्ष की जीत थी जो हर बार की असफलता से होकर गुज़रा था। स्वाति की यह उपलब्धि आज उन सभी छात्रों के लिए रौशनी की किरण है जो परेशान हैं, हार मान चुके हैं, या सोच रहे हैं कि अब क्या करें।




