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अब 87 लाख नहीं बल्कि पूरे देश के 10 करोड़ आदिवासियों की समस्याओं को उठाने जा रहे झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन

zabazshoaib

Ranchi: अब हमें यह मान लेना चाहिए कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन देशभर के आदिवासियों की समस्याओं को राष्ट्रीय पटल पर उतारने को तैयारी कर चुके हैं. आदिवासी समाज के प्रति उनकी सोच अब क्षेत्रीय से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर वाली हो गयी है. अब यह नहीं ही कहा जा सकता कि वे केवल संथाल परगना या झारखंड के कुछ चुने जनजातीय बहुल इलाकों की बात करने वाले हैं.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित तीसरे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि हेमंत सोरेन ने जैसी बातें की, वह यह बताने को काफी है कि उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) अब 88 लाख नहीं बल्कि 10 करोड़ से अधिक आदिवासियों की बात करेगा. झामुमो अब देश भर के आदिवासियों की समस्या को उजागर करेगा. बता दें कि 2011 की जगगणना के अनुसार भारत में आदिवासियों की संख्या दस करोड़ से कुछ अधिक है. वहीं, झारखंड में इनकी आबादी करीब  86.45 लाख है.

हेमंत सोरेन के तीन बयान के मायने काफी अलग है

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के तीन बयानों के मायने काफी अलग है. उनके बयान से इसकी पुष्टि होती है कि झामुमो अब राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय समाज के मुद्दों को उठाने जा रहा है.
पहला – राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड, बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और बंगाल समेत देश के कई हिस्सों में आदिवासी समाज की समस्याओं का निदान नहीं किया गया है. यह समस्या पिछले 75 सालों से बनी है. उनकी सरकार इनकी समस्याओं का समाधान तो कर रही है.
दूसरा – गुरूवार को कार्यकर्ताओं के अंदर जोश भरने के साथ ही हेमंत सोरेन ने गुजरात के आदिवासी को संदेश दे दिया. उन्होंने अपील कर कहा कि कुछ भी हो जाए, आदिवासियों के लिए आरक्षित एक भी सीट भाजपा वालें जीत नहीं पाए, इसका वे ख्याल रखें.
तीसरा – झारखंड बनने के बाद पहली बार यहां पर विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किए. इसमें देशभर के आदिवासी समाज के लोगों ने शिरकत की.

सरना धर्म कोड प्रस्ताव पास करना हेमंत सोरेन का पहला संकेत

हेमंत की इस पहल की शुरूआत तो नवंबर 2020 से देखने को मिली है, जब पहली बार किसी राज्य के विधानसभा से आदिवासी समाज के लोगों को पहचान दिलाने की पहल हुई. झारखंड विधानसभा से ‘सरना आदिवासी धर्म कोड बिल’ को सर्वसम्मति से पास किया गया. इस कोड में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रस्ताव किया गया है. हेमंत सोरेन सरकार का कहना है कि ऐसा करके आदिवासियों की संस्कृति और धार्मिक आज़ादी की रक्षा की जा सकेगी. हालांकि पाला अब केंद्र सरकार के हाथों में है कि वह इस मांग को लेकर क्या रुख अख्तियार करती है. लेकिन जो भी है आदिवासियों को अपनी एक अलग पहचान देने की पहल झारखंड से ही हुई है, वह भी हेमंत सोरेन के नेतृत्व में.

गुजरात के विधायक ने कहा था कि हेमंत को अब देशभर के आदिवासियों का नेतृत्व करना चाहिए.

झारखंड सरकार की इसी पहल को देख गुजरात के आदिवासी नेता व विधायक छोटूभाई बसावा ने हेमंत सोरेन की तारीफ की थी. उन्होंने स्थानीय मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि हेमंत सोरेन को देश के स्तर पर आदिवासियों का नेतृत्व करना चाहिए. हालांकि इसके लिए सरना धर्म कोड की जगह कोई वैसा नाम सोचना चाहिए, जो देश भर के आदिवासियों को मान्य हो.

झामुमो अब गुजरात विधानसभा के 40 आदिवासी सीटों पर रखने जा रहा नजर,

झामुमो अब गुजरात विधानसभा चुनाव में भी आदिवासियों के हितों की बात करने का फैसला किया है. पार्टी नेता सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि भाजपा शासन सभी राज्यों में आदिवासियों को आज हासिये पर ढकेला जा रहा है. आए दिन आदिवासी, दलितों के साथ शोषण, अत्याचार बढ़ रहा है. ऐसे में झामुमो अब गुजरात विधानसभा के 40 ऐसे सीटों पर भाजपा के चाल और चेहरे को नाकाब करने की कोशिश करेगा, जो आदिवासी (27 सीटें) और अनुसूचित जाति (17 सीटें) के लिए आरक्षित है. इसमें 27 सीटें अनुसूचित जनजाति और 13 सीट एससी के लिए हैं.