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वित्त मंत्री ने कहा कोयला क्षेत्र अब निजी हाथो में होगा, जानिए झारखण्ड पर क्या होगा असर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के एलान के चौथे चरण में शनिवार को कोयला क्षेत्र एवं खनन को लेकर कई अहम घोषणाएं की। उन्होंने कहा कि कोयला क्षेत्र में सरकार के एकाधिकार को समाप्त किया जाएगा। उन्होंने कहा कि लगभग 50 नए ब्लॉक खनन के लिए नीलामी पर उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके लिए नियमों में ढील दी जाएगी।

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अब निजी क्षेत्र को प्रति टन निर्धारित शुल्क के हिसाब से कॉमर्शियल लाइसेंस नहीं दिया जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा कि निजी क्षेत्र को कोयले का कॉमर्शियल उत्खनन करने के लाइसेंस राजस्व में हिस्सेदारी (रेवेन्यू शेयरिंग) की व्यवस्था के तहत दिए जाएंगे।

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सरकार खनिज क्षेत्र को लेकर एक्सप्लोरेशन माइनिंग प्रॉडक्शन सिस्टम लाएगी। सीतारमण ने कहा कि नई व्यवस्था के तहत 500 माइनिंग ब्लॉक्स उपलब्ध कराए जाएंगे। वित्त मंत्री के मुताबिक इसमें भी 50,000 करोड़ का खर्च इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर होगा। उन्होंने बॉक्साइट और कोयला के एकसाथ नीलामी होने की बात कही है.

बात अगर झारखंड की करे तो धनबाद कोयले का एक ऐसा क्षेत्र है जो पुरे देश में कोयला राजधानी के नाम से जाना जाता है. कोयला क्षेत्र के निजीकरण का सबसे बड़ा असर यहाँ देखने को मिल सकता है. प्राइवेट कंपनी अब न सिर्फ कोयला का उत्पादन करेंगी बल्कि उसे बेच भी सकेगी। निजीकरण के पीछे सरकार का तर्क है की इससे कोयला क्षेत्र में हो रहे घाटे को कम किया जायेगा।

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1972 में जब इंदरा गाँधी प्रधानमंत्री हुआ करती थी उस वक्त कोयला क्षेत्र निजी हाथो में हुआ करता है लेकिन इंदरा गाँधी ने कोयला क्षेत्र को निजी से सरकार बना दिया था. उस वक्त निजी बैंको का भी राष्ट्रीयकरण किया गया था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषण के बाद कोयला क्षेत्र फिर एक बार उसी जगह पहुँच जायेगा। जहाँ से उसकी शुरुआत राष्ट्रीयकरण के लिए हुई थी. कोयला क्षेत्रो में सरकार का अब कोई भी अधिकार नहीं होगा।

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कोयला क्षेत्र के निजी हाथो में जाने के बाद सरकारी कंपनी BCCL, CCL ECL जैसी कंपनियों पर भारी आफत आने वाली है. निजीकरण होने से इन्हे सबसे ज्यादा नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है. निजीकरण होने से कर्मचारियो सहित कंपनियों में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। हालांकि कई सरकारी कंपनी है जो पहले से घाटे में चल रही है.

कोयला क्षेत्र का निजीकरण होने से सबसे ज्यादा मार मजदूरों पर पड़ेगा। ट्रेड यूनियन के नेता इसे लेकर रणनीति बनाने में जुट गए है. लॉकडाउन खत्म होने के बाद एक बड़ा आंदोलन देखा जा सकता है. देश में जब भी निजीकरण की बात सामने आई है तो उसका व्यापक विरोध देखने को मिला है. उम्मीद भी ये जताई जा रही है इस निजीकरण के फैसले के बाद फिर एक बार बड़ा आंदोलन हो सकता है.