रविवार को झारखंड के विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा मानव श्रंखला बना कर राज्य सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि सरकार सरना धर्म कोड के लिए सदन से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे. आदिवासी संगठनों का यह भी कहना है कि यदि सरना धर्म कोड को लागू नहीं किया जाता है तो 2021 में होने वाली जनगणना के दौरान आदिवासी समाज हिस्सा नहीं लेगा. सत्ता हस्सिल करने के बाद राजनितिक दल सरना धर्म कोड को भूल जाते है. विभिन्न संगठनों का कहना है कि आदिवासी प्रकृतिक पूजक है. वर्तमान समय में हमारी सभ्यता और संस्कृति को एक साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है. आजादी के 70 से अधिक गुजर जाने के बाद भी हमे अपनी धार्मिक पहचान नहीं मिल पाई है. संगठनों कि मांग है कि 2021 में होने वाले जनगणना में सरना धर्म कॉलम अंकित किया जाए.
सरना धर्म कोड लागू करने कि फिर उठी मांग, आदिवासी संगठनों ने सड़को पर उतर बनाया मानव श्रंखला
क्या है सरना धर्म कोड, जिसे लागू करने कि लगातार कि जा रही है मांग:
झारखंड एक आदिवासी बहुल्य राज्य है और इस हिसाब से यहाँ लंबे समय से अलग धर्म कोड यानि सरना धर्म कोड लागू करने कि मांग कि जा रही है. सरना एक धर्म है जो प्रकृतिक पूजा करने वालो के लिए होता है. राज्य में कुल 32 जनजाति निवास करते है. यह सभी फिल्हाल हिन्दू धर्म कोड के अंतर्गत ही आते है जबकि इसाई धर्म अपना चुके लोग अपने धर्म कोड में ईसाईं लिखते है. आदिवासी स्वयं को हिन्दू नहीं मानते है. इसलिए वो अपने लिए अलग धर्म कोड कि मांग कर रहे है.
सरना धर्म कोड की मांग को देखते हुए राज्य सरकार के द्वारा चल रहे मानसून सत्र में आज प्रस्ताव ला सकती है. राज्य के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरावं ने इस बात के संकेत दिए है. उरांव ने मीडिया को दिए अपने एक बयान में कहा है कि इस विषय पर मुख्यमंत्री से बात हो चुकी है हम जल्द ही इस सरना धर्म कोड को लागू करने के लिए सदन से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजेंगे.
बता दें कि सरना धर्म कोड लागू करने कि मांग को लेकर सत्ताधारी दल के कई विधायक खुल कर इसकी सिफारिश कर चुके है. विधायक बधू तिर्की तो इस विषय को लेकर सड़क पर भी उतरे और सरकार से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजना कि मांग रखी है.