Hemant Soren: झारखंड में अगस्त महीने से जारी सियासी उलझने सिमटने का नाम नहीं ले रही है. राजभवन के मौन और चुनाव आयोग की भूमिका ने राज्य में सियासी अस्थिरता की संभावनाओ का दंश लाकर खड़ा कर दिया. हालांकि वर्तमान हेमंत सरकार की लोकप्रियता या उनके कामकाज पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है.
जिन राजनैतिक परिस्थितियों का सामना इस समय हेमंत सोरेन सरकार कर रही है. ऐसी विकट स्थिति का सामना करने की हिम्मत किसी और सरकार में शायद ही होती. ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट मामले में अगस्त महीने में राजभवन को चुनाव आयोग ने अपना मंतव्य भेज दिया. अटकले लगाई जाने लगी कि शायद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की योग्यता ही खतरे में घिर जायेगी. मगर राजभवन ने महीनो बीतने के बाद भी उस चिट्ठी पर से पर्दा नहीं उठाया जिसमे हेमंत सोरेन सरकार का भविष्य टिका था.
Hemant Soren: राज्यपाल रमेश बैस देते रहे गोल-मटोल जवाब
राज्यपाल रमेश बैस मीडिया के सवालों का गोल मटोल जवाब देते दिखे. कभी संवैधानिक पद की मर्यादा को ताक पर रखकर राज्यपाल ने “एटम बम” फूटने जैसी भाषा का इस्तेमाल किया, तो कभी चिट्ठी के बारे में जोर से चिपके जाने जैसी बाते कहते रहे. अगस्त से नवंबर तक राजभवन ने इसी संशय को सियासी सवाल बना दिया कि आखिर राजभवन के पास कोई चिट्ठी आयी भी या नहीं. अगर आयी तो उसमे क्या लिखा था, इसका खुलासा कब किया जायेगा ? समय बीता तो राज्यपाल रमेश बैस ने अपने गृह राज्य छत्तीसगढ़ में एक बयान दिया जिसने इस चिंगारी को फिर से भड़का दिया.
रमेश बैस ने कहा कि चुनाव आयोग के पहले मंतव्य के बाद उन्होंने इसी मामले में आयोग से दूसरी बार मंतव्य मांगा है. यहीं वजह है कि दूसरा मंतव्य आने से पहले इस मामले में वो कुछ नहीं बोल सकते है. उन्होंने बस इशारो में कहा कि दिवाली के बाद झारखंड में एटम बम फूटेगा. दिवाली बीत गयी, मगर बात वही के वही सवाल बनकर खड़ी हो गयी कि दूसरा मंतव्य मांगने की जरुरत क्यों पड़ी ? आरटीआई दाखिल कर चुनाव आयोग से जब दूसरी बार मंतव्य के संबंध में पूछा गया तो चुनाव आयोग ने जवाब में कहा कि दूसरी बार मंतव्य के लिए अबतक झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस की ओर से कोई पत्र नहीं आया है.
इस जवाब ने संवैधानिक शिष्टाचार को बनाये रखने के लिए जिम्मेदार दोनों संवैधानिक संस्थाओ पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया. संवैधानिक गरिमा को अक्षुण रखने के लिए बनायीं गयीं इन दोनों शक्तियों को संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया. सवाल है जब आयोग को दूसरे मंतव्य के बारे में पत्र लिखा ही नहीं गया तो राज्यपाल बार बार चुनाव आयोग और दूसरे बार मंतव्य का जिक्र कर जनता को गुमराह क्यों करते रहे ? अगर दूसरी बार कोई मंतव्य मांगा ही नहीं गया है, तो छत्तीसगढ़ में राज्यपाल ने झूठ क्यों बोला ? राजभवन अगस्त से अबतक मौन क्यों है ? हेमंत सोरेन सरकार को अस्थिर करने और परेशान करने के मकसद से कहीं ये कोई साजिश तो नहीं ? आदिवासी मुख्यमंत्री को ऐतिहासिक फैसले लेने से रोकने के लिए कामकाज को अटकाने, भटकाने और लटकाने के षड्यंत्र में कहीं संवैधानिक संस्थाए शामिल तो नहीं है ? आखिर कौन सही है, राजभवन या चुनाव आयोग ?
उधर इस मामले में आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सीएम ने चुनाव आयोग की आलोचना करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग की सिफारिश का खुलासा न करके राजभवन ने ‘संवैधानिक मानदंडों की विसंगति’ पैदा कर दी है. यह राज्य को ‘अस्थिरता’ की ओर ले जा रहा है. ऐसा परिस्थिति चुनाव आयोग द्वारा जानबूझकर बनाया गया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में राज्यपाल रमेश बैस को चुनाव आयोग के पत्र पर कार्रवाई करने से रोकने की मांग की गई है, जिसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकील पियूष चित्रेश ने बताया “चुनाव आयोग की सिफारिश पर राज्यपाल को कार्रवाई करने से रोकने के लिए याचिका दायर की गई है. कारण यह है कि रायपुर में राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने इस पर दूसरी राय मांगी है. उन्होंने दिवाली के बाद रांची में ‘परमाणु बम’ विस्फोट होगा जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया. हालांकि, जब हमने चुनाव आयोग को लिखा तो उन्होंने कहा कि राज्यपाल के कार्यालय से ऐसा कोई आदेश नहीं भेजा गया है. हमने आरटीआई भी लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस पूरी योजना ने इस मामले में एक राजनीतिक सवाल पैदा कर दिया है. हमने चुनाव आयोग को भी इसमें एक पार्टी बनाया है.”