School of Excellence: झारखंड के सरकारी स्कूलों में बदहाल शिक्षा व्यवस्था की स्थिति जगजाहिर है. शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड राज्य काफी पीछे है. वैसे तो राज्य के सभी जिलों में कार्यरत सरकारी स्कूलों की संख्या करीब 34,000 हैं, लेकिन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में ये पीछे हैं.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का मानना है कि बिना बेहतर शिक्षा दिए बिना झारखंड जैसे पिछड़े राज्य को विकास के मार्ग पर नहीं बढ़ाया जा सकता. इसे देखते हुए मुख्यमंत्री के निर्देश पर शिक्षा के क्षेत्र में पिछले तीन वर्षों में काफी काम किए जा रहे हैं. सरकार के स्तर पर सरकारी स्कूलों का कायाकल्प हो रहा है. किए जा रहे कामों का रिजल्ट भी सकारात्मक आ रहा है.
इसकी पुष्टि बीते दिनों विधानसभा पटल पर रखी गयी आर्थिक समीक्षा-2022 से होती है. बता दें कि इसी शैक्षणिक सत्र से राज्य के 24 जिलों में 80 स्कूल ऑफ एक्सीलेंस (मॉडल स्कूल) में सीबीएसई की तर्ज पर पढ़ाई शुरू होने जा रही है. इन स्कूलों में पढ़ाई शुरू होने से सरकारी स्कूलों की स्थिति में और सुधार होगा.
आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 रिपोर्ट नामांकन में बढ़ोतरी, कक्षाओं की स्थिति काफी बेहतर
झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों के नामांकन में पिछले वर्षों में लगातार वृद्धि हुई है. वित्तीय वर्ष 2019-2020 में नामांकन दर 74.9 लाख था, जो बढ़कर 2021- 2022 में 76.9 लाख हो गया है. इसी तरह 8वीं से 12वीं तक कक्षा में छात्रों के नामांकन में भी लगातार सुधार हुआ है. वित्तीय 2020-2021 की तुलना में 2021-2022 के दौरान छात्रों के नामांकन में 5.4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है. इसी तरह राज्य के 75 प्रतिशत प्राथमिकी विद्यालयों, 71.4 प्रतिशत उच्च प्राथमिक, 70.1 प्रतिशत माध्यमिक और 72.3 प्रतिशत उच्च माध्यमिक विद्यालयों की कक्षाएं बेहतर स्थिति में है.
असर की रिपोर्ट : बच्चों ने सरकारी स्कूलों का किया रुख, नामांकन दर बढ़ा
गैर सरकारी संस्थान असर (ऐनुअल स्टेट ऑफ एजुकेशन, ASAR) की वार्षिक रिपोर्ट-2021 की मानें, तो कोविड के बाद झारखंड में बड़ी संख्या में बच्चों ने सरकारी स्कूलों का रुख किया है. एक साल में सरकारी स्कूलों में 6.5% बच्चे बढ़े हैं. 2020 में सरकारी स्कूलों में नामांकन 72.1 प्रतिशत था, जो 2021 में बढ़कर 78.6 प्रतिशत हो गया. असर रिपोर्ट की मानें, तो झारखंड में कक्षा दो के बच्चों की संख्या में कमी आई है, वहीं 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के नामांकन में वृद्धि हुई. यह आंकड़ा वर्ष 2018 में 97.2 प्रतिशत था, जो बढ़कर 97.4 हो गया. इस तरह नामांकन में 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
School of Excellence: शिक्षा को बेहतर बनाने में काम आएगा शिशु रजिस्टर रिपोर्ट 2022-23
कक्षा दो के बच्चों की संख्या में कमी आने को देख बीते दिनों हेमंत सोरेन सरकार ने एक अनूठी पहल की. 3 से 18 साल के बच्चों के विद्यालय में नामांकित होने या नामांकित नहीं होने तथा विद्यालय से ड्रॉप आउट होने से संबंधित जानकारी लेने के लिए शिशु रजिस्टर रिपोर्ट, 2022-23 संबंधी कार्य किया गया. इसके पीछे सरकार का उद्देश्य था कि इस आयु वर्ग के सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाए. सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों, शिक्षा विभाग के विभिन्न पदाधिकारियों एवं चिह्नित स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों द्वारा प्रत्येक परिवार में जाकर 3 से 18 आयु वर्ग के स्कूल जाने वाले, नहीं जाने वाले एवं ड्रॉप आउट बच्चों की जानकारी ली गयी. यह रिपोर्ट शिक्षा को बेहतर बनाने में काफी काम आएगा.
School of Excellence: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों से केवल पढ़ाने-लिखाने का लिया जाएगा काम
शिक्षा को बेहतर और गुणवत्तापूर्ण करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिवंगत शिक्षा मंत्री रहे जगरनाथ महतो का सभी जिलों के शिक्षा अधीक्षकों को सख्त निर्देश दिया गया है कि शिक्षकों को स्कूलों में सिर्फ पढ़ाने-लिखाने का ही काम लिया जाएगा. बता दें कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा चौपट होने के पीछे एक सबसे बड़ा कारण शिक्षकों का गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाना है.
पहली बार सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में कला-संस्कृति का एक अलग विषय जुड़ेगा
शिक्षा को लेकर बीते दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक बड़ी घोषणा की है. उन्होंने कहा है कि सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में कला संस्कृति एक अलग विषय के रूप में शामिल किया जाएगा. इसके पीछे की उनकी सोच राज्य की भाषा, कला संस्कृति को आनेवाली पीढ़ी भूले नहीं, यह उनकी सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है. ऐसी सोच रखने वाले हेमंत सोरेन शायद झारखंड के पहले मुख्यमंत्री हैं.