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बाबूलाल की बाहरी-भीतरी बयान पर बवाल, बाहरियों की दुकान नहीं चलने से भाजपा परेशान- हेमंत झारखंडियों को दे रहे है सम्मान

झारखंड के लोगो की उम्मीदों को पूरा करने के लिए राजनीति को परे रख हेमंत सोरेन ने एक नई लकीर खिची है. झारखंड के निवासियों को राज्य गठन के बाद से अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी हो या फिर अर्जुन मुंडा किसी की सरकार में झारखंडियों को वो अधिकार नहीं मिल पाया जो राज्य गठन का मुख्य उद्देश था.

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद कोरोना ने 2 साल के मुख्य समय को बर्बाद किया बावजूद इसके पिछले 1 साल में हेमंत सरकार ने ऐसे एतिहासिक कार्य किये है जो राज्य गठन के बाद आज तक नहीं हुए थे. हेमंत सोरेन सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णयों से विपक्षी खेमों और नेताओ की आपस में नहीं बन रही है.

बाबूलाल मरांडी जिस नियोजन नीति की कभी मांग करते थे वो अब भाजपा में दोबारा शामिल होने के बाद धुर विरोधी हो गए है. हेमंत सोरेन सरकार के नियोजन नीति को लेकर बाबूलाल मरांडी ने कहा है की मुख्यमंत्री बाहरी-भीतरी के नाम पर उन्माद फैला रहे है. सवाल यही उठता है कि झारखंडियों को उनका अधिकार देना कब से उन्माद फैलाना हो गया? भाजपा के नेता बाहरियों को झारखंड में लुट मचाने की खुली छूट देना चाहते है? ऐसे कई सवाल है जो झारखंडियों के मान में उठ रहे है. राज्य की नियोजन नीति रद्द होने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर बाहरी-भीतरी के नाम पर उन्माद फैलाने का आरोप पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने लगाया है। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि बाहरी-भीतरी का राग अलाप कर उन्माद फैलाने से झारखंड के युवा-बेरोजगार, छात्र नौजवान अब मुख्यमंत्री के झांसे में नहीं आएंगे।

हेमंत की नियोजन नीति को बाबूलाल ने बताया हैं उन्माद, भाजपा में जाने से पहले इसी नियोजन नीति का करते थे समर्थन

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी जिस नियोजन नीति को उन्माद फ़ैलाने से जोड़ रहे है वो भी कभी उसके पक्षधर रहे है हालांकि यह बात अलग है कि अब वह जिस पार्टी में है वहाँ झारखंडी नियोजन नीति की बात करने की किसी में हिम्मत नहीं है और जो यह हिमाकत कर देगा उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा या तो शांत करा दिया जायेगा. बाबूलाल मरांडी अब झारखंडी नियोजन नीति का पक्ष रखते नहीं दिखेंगे क्यूंकि वो भाजपा में मुख्यमंत्री बनने का सपना देख शामिल हुए. यही कारण है कि बाबूलाल मरांडी झारखंडी नियोजन नीति और आदिवासियों के सबसे बड़े मुद्दे आदिवासी सरना धर्म कोड को लेकर हमेश चुप्पी साधे रहते है. केंद्रीय नेतृत्व से दवाब मिलने के बाद किसी तरह से हेमंत सोरेन को घेरने में भाजपा की प्रदेश स्तरीय पूरी टीम लग जाती है लेकिन हमेशा की तरह नकामयाबी ही हाथ लगती है.

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हेमंत सोरेन सरकार की नियोजन नीति को झारखंडियों ने हाथों-हाथ लिया है. यही कारण है की 35 साल से अधिक उम्र के यूपी और बिहार वाले तकरीबन 19 लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर नियोजन नीति को रद्द करवाया है. आखिर यूपी और बिहार वालों को झारखंडी की नियोजन नीति से क्या मतलब होगा. जाहिर है की या किसी राजनितिक दल या फिर बाहरियों द्वारा झारखंड में नौकरी ना ले पाने के डर से याचिकाएँ दायर की गई होंगी. जो भी हो लेकिन हेमंत की नियोजन नीति रद्द होने का सबसे बड़ा नुकसान यही किसी को हुआ है तो वह सिर्फ झारखंडी ही है.