लॉकडाउन होने से छोटे-छोटे उद्योग सहित कई ऐसी कंपनिया है जो बंद हो चुकी है. 21 दिनों का लॉकडाउन बढ़ते-बढ़ते 4 महीनो तक पहुंच गया है. राशन कार्ड वालो को राशन दिया जा रहा है. और बड़े लोग अपनी बचत के पैसे से अपना घर चला रहे है. लेकिन इनसब के बीच मध्यम वर्ग परिवारों के बारे में राज्य से लेकर केंद्र की सरकार ने भी कुछ नहीं किया है. ये किसी तरह अपने परिवार को चला रहे है लेकिन 3 महीने से अधिक समय बाद भी लॉकडाउन नहीं खुला तो इनके सब्र का बांध टूटने लगा है.
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छोटे-छोटे शिक्षण संस्थाओ का कहना है की 3 महीने से अधिक लॉकडाउन होने की वजह से हमरी आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ गई है. हमारे पास जो पैसे थे खत्म हो चुके है. सरकार भी हमारी मदद नहीं कर रही है. अनलॉक 1 में शराब की दुकाने खुल गयी लेकिन हमारी संस्थाएं नहीं। हम भूखे मर रहे है लेकिन ये किसी को नहीं दिखता है.
दरअसल जावेद अनवर नामक एक फेसबुक यूजर जो देवघर के रहने वाले है उनका कहना है की हम छोटे शिक्षण संस्था वाले है. हमारे यहाँ 10-15 विद्यार्थी पढ़ाई करते है. लॉकडाउन होने की वजह से जिस तरहा सभी शिक्षण संस्था बंद है हमने भी अपनी संस्था को बंद रखा है. लेकिन जैसे-जैसे लॉकडाउन की समय सिमा बढ़ती जा रही है और आत्महत्या की तरफ बढ़ते जा रहे है.
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जावेद अनवर कहते है हमारे यहाँ विद्यार्थियों की संख्या भी बहुत कम है हमारा घर उनके दिए फीस के पैसो से चलता है. जब पढाई बंद है तो फ़ीस कौन देगा। ऐसे में हम भूखमरी की तरफ जा रहे है. परिवार चलने के लिए हमारे पास पैसे नहीं बचे है. हमारे जैसे कई ऐसे प्राइवेट शिक्षक है जो सब्जी बेचने को मजबूर है हमारी कोई सुनने वाला नहीं है. सरकार ने शराब की दुकानें खोलने की अनुमति तो दे दी है लेकिन हम जैसे छोटे संस्थानों को नहीं।
हमारा हाल कुछ ऐसा है की न हम अपना दर्द किसी को बता सकते है और न हमारी कोई मदद करने वाला है. हमें तो बस अपने हाल पर रोने के लिए छोड़ दिया गया है.