सरना धर्म कोड लागू करने कि मांग लंबे समय से आदिवासी संगठनो द्वारा किया जा रहा है. झारखंड जैसे आदिवासी बहुल्य राज्य में भी इसकी मांग लगातार कि जा रही है. राज्य में एक आदिवासी मुख्यमंत्री है ऐसे में आदिवासी समुदाय का मानना है कि उनकी मांगो को जरुर माना जायेगा. परन्तु इन सब के परे 20 सितंबर को आदिवासी संगठन सडकों पर उतरे और मानव श्रंखला बनाकर राज्य सरकार से चल रहे मानसून सत्र में सरना धर्म कोड लागू करने के लिए प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजने की मांग रखी है. सडको पर मानव श्रंखला बना कर संगठनों ने सरकार का ध्यान अपनी और खीचा है.
सड़क पर उतरे आदिवासी संगठनों का कहना है कि सरना धर्म कोड को चुनावी मुद्दा बना कर सभी राजनितिक दलों ने हमे गुमराह किया है. सरकार अगर इस ओर ध्यान नहीं देगी तो आदिवासी समाज 2021 के जनगणना में भाग नहीं लेगा. सत्ता हस्सिल करने के बाद राजनितिक दल सरना धर्म कोड को भूल जाते है. विभिन्न संगठनों का कहना है कि आदिवासी प्रकृतिक पूजक है. वर्तमान समय में हमारी सभ्यता और संस्कृति को एक साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है. आजादी के 70 से अधिक गुजर जाने के बाद भी हमे अपनी धार्मिक पहचान नहीं मिल पाई है. संगठनों कि मांग है कि 2021 में होने वाले जनगणना में सरना धर्म कॉलम अंकित किया जाए.
क्या है सरना धर्म कोड, जिसे लागू करने कि लगातार कि जा रही है मांग:
झारखंड एक आदिवासी बहुल्य राज्य है और इस हिसाब से यहाँ लंबे समय से अलग धर्म कोड यानि सरना धर्म कोड लागू करने कि मांग कि जा रही है. सरना एक धर्म है जो प्रकृतिक पूजा करने वालो के लिए होता है. राज्य में कुल 32 जनजाति निवास करते है. यह सभी फिल्हाल हिन्दू धर्म कोड के अंतर्गत ही आते है जबकि इसाई धर्म अपना चुके लोग अपने धर्म कोड में ईसाईं लिखते है. आदिवासी स्वयं को हिन्दू नहीं मानते है. इसलिए वो अपने लिए अलग धर्म कोड कि मांग कर रहे है.