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Supreme Court: झारखंड के नियोजन नीति असंवैधानिक, हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया मोहर,नियुक्त शिक्षक नहीं हटेंगे

Jharkhand Niyojan Niti 2016: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की 2016 की नियोजन नीति को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था. शीर्ष अदालत ने राज्य स्तर पर कॉमन मेरिट लिस्ट बनाने का निर्देश दिया है. आपको बता दें कि खूंटी के शिक्षक सत्यजीत कुमार एवं अन्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर झारखंड हाईकोर्ट के 21 सितंबर 2020 के फैसले को चुनौती दी गई थी.
13 अनुसूचित जिलों में 8423 शिक्षकों की दोबारा नियुक्ति करने का आदेश दिया था. हालांकि अनुसूचित जिलों में जिन शिक्षकों की नियुक्ति हो गई है, उनकी सेवा बरकरार रहेगी. कोर्ट ने कहा कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी है. ऐसे में अगर नियुक्त शिक्षकों को हटाने का आदेश दिया तो वहां के छात्रों को नुकसान होगा.

क्या है 2016 की नियोजन नीति?

2016 की नियोजन नीति के तहत झारखंड के 13 अनुसूचित जिलों के सभी तृतीय व चतुर्थवर्गीय पदों को उसी जिले के स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित किया गया था, वहीं गैर अनुसूचित जिले में बाहरी अभ्यर्थियों को भी आवेदन करने की छूट दी गयी थी. इस नीति के आलोक में वर्ष 2016 में अनुसूचित जिलों में 8,423 व गैर अनुसूचित जिलों में 9149 पदों पर (कुल 17572 शिक्षक) नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी.

13 अनुसूचित जिले:

रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज।

हाईकोर्ट ने कहा था,50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दे सकते:

नियोजन नीति के खिलाफ शिक्षक सत्यजीत कुमार एवं अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन जजों की वृहद खंडपीठ ने इस नीति को संविधान के प्रावधानों के खिलाफ बताया था। कहा था कि इस नीति से कुछ जिलों के सभी पद खास लोगों के लिए आरक्षित हो रहे हैं, जबकि सरकार नौकरियाें में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दे सकती। खंडपीठ ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द करते हुए फिर से प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। साथ ही 11 गैर अनुसूचित जिलों में नियुक्ति प्रक्रिया को बरकरार रखा था। इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई थी।