Ranchi: भारतीय राजनीति में एक से बढ़कर एक दिग्गज बैठे हुए हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान पूरे भारतवर्ष में अपने नाम के झंडे लहराए हैं जिनमें से एक हैं झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन(Hemant Soren) । वह एक ऐसे दिग्गज नेता हैं जिन्होंने अकेले ही अपने दम पर पार्टी की 81 सीट को साथ लेकर चुनावी मैदान में उतर गए। झारखंड के मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में हेमंत सोरेन को देखा जाता है। वह पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता शिबू सोरेन के बेटे हैं। झारखंड में मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें पांचवी बार देखा जा रहा है और अपनी भारी जीत के साथ वे झारखंड के चुनावी मैदान में साल 2019 की भी जीत हासिल कर चुके हैं। उनके पिताजी भी बहुत बड़े राजनीतिज्ञ रह चुके हैं जिसके चलते उन्हें झारखंड में राजनीति का गुरु माना जाता है।
हेमंत सोरेन ने अपनी जीवन में राजनैतिक रुख साल 2005 में किया जब उन्होंने पहली बार विधानसभा चुनावों में दुमका नाम जगह से चुनाव से लड़ा था। इस चुनावी प्रक्रिया में उन्हें निराशाजनक हार का सामना करना पड़ा।
उसके बाद में वे पूरी तरह से राजनीति में तब उतरे जब उनके बड़े भाई दुर्गा की अचानक मृत्यु हो गई थी। उस समय साल 2009 के दौरान उन्हें वरिष्ठ जेएमएम नेता के रूप में राजनीति का मुख्य केंद्र बना दिया गया।
24 जून 2009 को वे राज्यसभा के एक महत्वपूर्ण सदस्य बन चुके थे जिस के बाद 23 सितंबर 2009 को वे एक विधायक के रूप में निर्वाचित हो चुके थे।
सितंबर सन 2010 को जनता के प्यार ने उन्हें झारखंड के डिप्टी सीएम के पद पर आसीन कर दिया। इस पद पर वे लगातार 8 जनवरी साल 2013 तक बने रहे।
जिस समय अर्जुन मुंडा ने भाजपा, जेएमएम, जेडीयू, आजसू का गठबंधन किया था उस समय सितंबर में हेमंत झारखंड के उप मुख्य मंत्री के रूप में उभर कर सामने आए।
सन 2013 में वे झारखंड राज्य के युवा मुख्यमंत्री बन गए और दिसंबर 2014 तक किसी पद पर आसीन रहे। 13 जुलाई 2013 को भारी बहुमत से जीत कर उन्होंने सीएम की कुर्सी को संभाल लिया था।
उसी साल जनवरी में ही हेमंत के विपक्षी दलों में कांग्रेस, और आर जेडी के साथ महागठबंधन की योजनाएं बनाए जाने लगी लेकिन वे सभी योजनाएं धराशाई हो गई।
• एक बार फिर से झारखंड चुनाव के मैदान में वह लड़ाई जीत गए हैं और फिर से झारखंड में अपनी सरकार बनाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी को संभालने के लिए फिर से पूरी तरह से तैयार है।
हेमंत सोरेन इस बार झारखंड के सातवें मुख्यमंत्री के रूप में मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने वाले हैं वह दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं।
उनके पूरे राजनीतिक कैरियर में उनकी पत्नी कल्पना ने उनका बहुत ज्यादा सहयोग दिया है। वह बराबर से उनके साथ सदैव खड़ी रहती है। झारखंड में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच ओपनियन मेटर्स अ रेटिंगोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया की तरफ से एक सर्वे किया गया। इसमें ताजा सियासी हालात पर आम जनता की राय ली गई। इसमें जनता से कुछ सवाल पूछे गए और उस जवाब के आधार पर रिपोर्ट तैयार हुई। जनता से पूछा गया कि क्या सीए हेमंत सोरेन को इस्तीफा देना चाहिए? क्या आप इस बात से सहमत हैं कि सीएम के खिलाफ साजिश हुई है? क्या आपकी नजर में सीएम ने पद का दुरुपयोग किया है? या क्या आप उनके कामकाज से संतुष्ट हैं?
लोगों से जब पूछा गया कि क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को त्यागपत्र देना चाहिए तो 32 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया वहीं 59 फीसदी लोगों ने कहा कि हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बने रहना चाहिए। वहीं 9 फीसदी लोग वैसे थे जिन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता। क्या आप सीएम हेमंत सोरेन के कामकाज अथवा कार्यशैली से संतुष्ट हैं। 53 फीसदी लोगों ने कहा कि हां वे सीएम के कामकाज से संतुष्ट हैं। 29 फीसदी लोगों ने उपरोक्त सवाल का जवाब ना में दिया वहीं 4 फीसदी लोगों ने कहा कि वे नहीं जानते।
क्या झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए। 87 फीसदी लोगों ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। केवल 4 फीसदी लोग प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के पक्ष में हैं। 9 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई आइडिया नहीं है।
हेमंत सोरेन ने कहा मेरे लिए मेरी आदिवासी की पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई है. आज हम एक ढंग से अपने समाज की पंचायत में खड़े होकर बोल रहे हैं. आज हम अपनी बात करने के लिए खड़े हुए हैं. यह सच है कि संविधान में अनेकों प्रावधान किये गये हैं, जिससे आदिवासी समाज के जीवन स्तर में बदलाव आ सके.
परंतु, बाद के नीति-निर्माताओं की बेरुखी का नतीजा है कि देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी है. आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है. क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग है। भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा – -संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया उसी विविधता को आज के नीति- निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं? संवैधानिक प्रावधान सिर्फ चर्चा का विषय बन के रह गये हैं.
हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है. विकास के नये अवतार से इन सभी चीजों को खतरा है. आखिर एक संस्कृति को हम कैसे मरने दे सकते हैं? विभिन्न जनजातीय भाषा बोलने वालों के पास न तो संख्या बल और न ही धन बल. उदाहरण के लिए हिंदू संस्कृति के लिए असुर हम आदिवासी ही हैं.
इसके बारे में बहुसंख्यक संस्कृति में घृणा का भाव लिखा गया है, मूर्तियों के माध्यम से द्वेष दर्शाया गया है, आखिर उसका बचाव कैसे सुनिश्चित होगा, इस पर हमें सोचना होगा. धन-बल होता तो हम जैन/ पारसी समुदाय की तरह अपनी संस्कृति को बचा पाते. ऐसे में विविधता से भरे इस समूह पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. आदिवासी कौम एक स्वाभिमानी कौम है, मेहनत करके खाने वाली कौम है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है. हेमन्त सोरेन ने कहा हम इस देश के मूलवासी हैं. हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, जानवर बचाया, पहाड़ बचाया ? हां, आज यह समाज यह सोचने को मजबूर है कि जिस जंगल-जमीन की उसने रक्षा की आज उसे छीनने का बहुत तेज प्रयास हो रहा है.
जानवर बचाओ, जंगल बचाओ सब बोलते हैं पर आदिवासी बचाओ कोई नहीं बोलता. अरे आदिवासी बचाओ. जंगल- जानवर सब बच जायेगा. सभी की नजर हमारी जमीन पर है. हमारे जमीन पर ही जंगल है, लोहा है, कोयला है पर हमारे पास न तो आरा मशीन है और न ही फैक्ट्री.
कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़ है. वे हमें वनवासी कह कर पुकारना चाहते हैं. आज जरूरत है कि एक आम देशवासी के अंदर आदिवासी समाज के प्रति संवेदना जगायी जाये. जरूरत है आम जन के अंदर आदिवासी समाज के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना पैदा करने की. आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है. हमें जाति- धर्म-क्षेत्र के आधार पर बांट कर बताया जाता है.
सबकी संस्कृति एक है. खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए. हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए. हमें अपने 200- 250 वर्ष पूर्व के इतिहास को याद करना होगा.