पटना एक बार फिर चर्चा में तब आया था जब पिछले साल सितंबर में पटना में हुए जलजमाव की खबर देश-दुनिया में चर्चित हुई थी. लेकिन, इस मामले की जांच रिपोर्ट की मानें तो पटना वासियों की तबाही और राज्य सरकार की हुई किरकिरी के पीछे प्रकृति नहीं, बल्कि अफसरों की लापरवाही थी.
राजधानी को जलजमाव से उबारने के लिए दो जिम्मेदार संस्थान बुडको और पटना नगर निगम की लापरवाही, आपसी समन्वय के अभाव और संप हाउस व नालों की सफाई सिर्फ कागजों पर करने से कई दिनों तक शहर की बड़ी आबादी डूबी रही. विकास आयुक्त की अध्यक्षता में बनी जांच टीम ने करीब तीन महीने की मशक्कत के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है.
70 पेज की जांच रिपोर्ट पटना हाइकोर्ट को भी सौंपी गयी है. संप हाउस को चालू रखने के लिए डीजल और इलेक्ट्रिक पंप पर बुडको सालाना छह करोड़ रुपये खर्च करता रहा है. बोरिंग रोड के एक ही पंप से पूरी राजधानी के लिए डीजल की खरीद की जाती रही है. लेकिन, खर्च हुए पैसे की जांच और काम की पैमाइश नहीं हुई. जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में मामले की गहन जांच कराने का सुझाव नगर विकास विभाग और बुडको के मौजूदा प्रशासन को दिया है.
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जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि पटना नगर निगम के अफसर प्रत्येक शुक्रवार को बैठक करते थे. लेकिन, बैठक में किस बात की चर्चा हुई, क्या निर्णय हुए, इसकी कोई जानकारी नहीं थी. नालों की सफाई के लिए नगर विकास विभाग ने पैसे उपलब्ध कराये, उसे खर्च दिखाया गया. लेकिन, यह जानने की कोशिश नहीं हुई कि कितनी गहराई में और कहां तक नाला साफ हुआ.
हाइकोर्ट को भी सौंपी गयी है जांच रिपोर्ट
जलजमाव के तीन प्रमुख कारण
कागज पर हुई नालों व मेनहॉल की सफाई
संप हाउस से लेकर नालों तक की देखभाल और मरम्मत नहीं कराना
बड़े नालों से अतिक्रमण को नहीं हटाना
ये थे मुख्य रूप से जिम्मेदार
- चार कार्यपालक पदाधिकारी
- पांच इंजीनियर
- बुडको के पूर्व एमडी अमरेंद्र प्रताप सिंह
- पटना नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त अनुपम कुमार सुमन
नोट : तत्कालीन नगर आयुक्त अनुपम कुमार सुमन ने जांच समिति के समक्ष अपना पक्ष भी नहीं रखा.
बिना प्रभार दिये मार्च से मई तक दूसरे काम में व्यस्त रहे बुडको के एमडी
बुडको के तत्कालीन एमडी चुनाव व निजी काम में मार्च से मई तक व्यस्त रहे, लेकिन इस दौरान किसी को अपना प्रभार नहीं सौंपा. सभी संप हाउस के ऑउट-फॉल की जिम्मेदारी बुडको की होती है, लेकिन इस पर कोई काम ही नहीं हुआ. इससे पानी निकासी की कोई व्यवस्था ही कहीं नहीं थी. किसी संप हॉउस में आपात स्थिति के लिए कहीं डीजल की व्यवस्था तक नहीं थी. मॉनसून पूर्व बुडको व नगर निगम के बीच कोई बैठक ही नहीं हुई, जिससे न सफाई को लेकर रणनीति बनी और न ही कोई तैयारी हुई. नालों की सफाई नहीं होने से संप हाउस तक पानी नहीं पहुंचता था.
इंजीनियरों को नहीं मालूम है नालों का क्राॅस कनेक्शन
जांच में कई स्तर पर बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गयी है. सफाई समेत अन्य किसी बात को लेकर बुडको व नगर निगम के बीच कभी बैठक नहीं हुई. हर वर्ष जनवरी व फरवरी में नगर निगम पर नालों की सफाई कराने की जिम्मेदारी होती है, जो नहीं की गयी थी. किसी नाले की सफाई गहराई तक नहीं की गयी थी. किस नाले की कहां-कहां और कितनी सफाई हुई थी, इसकी कोई जानकारी बांकीपुर, कंकड़बाग, नूतन राजधानी अंचल और पाटलिपुत्र अंचल के पास थी ही नहीं. किसी नाले व ड्रेनेज सिस्टम का नक्शा न बुडको के पास और न ही नगर निगम के पास, न ही किसी संस्थान के पास है. सभी काम बिना किसी नक्शे और ठोस कार्ययोजना के हवा-हवाई ही कराये जाते थे.
Source: Prabhat Khabar