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पुराना नारा पुराना होने से पहले नया नारा आ जाता है !

राजनितिक मामलो के जानकार अजीज-ए-मुबारकी ने कहा कहते हैं जल्दी ही हम और हमारा देश आत्मानिर्भर बन जाएँगे , कोई बताए पेट्रोल रिफ़ाइनरी से पम्प तक , बैंक, रेल, इन्शुरन्स , हवाई अड्डा यहाँ तक के रेल्वे स्टेशन और airport तक को बेच दिया गया है या उसकी तैयारी है , पूरा भारत ही २ या ३ पूँजी पतियों पर निर्भर होता जा रहा है ऐसे में ये कहना के आत्मानिर्भर हो रहा है भारत , एक भद्धा मज़ाक़ से ज़्यादा कुछ नही.

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देश जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है उसी तरह नारे भी नए नए आ रहे हैं , पहले काला धन आना था , फिर 15 लाख आने थे,फिर समय आया मेक इन इंडिया , स्किल इंडिया , स्टैंड उप इंडिया का , फिर बेटी को पढ़ने की बात हुई , बुलिट ट्रेन चलाने की बात हुई , अच्छेदिन भी लाने की बात हुई अब आया है “आत्मनिर्भर “; कुछ हो या ना हो कम से काम ये सरकार नारे बनाने में आत्मनिर्भर दिख रही है ; पुराना नारा पुराना होने से पहले नया नारा आ जाता है .

अब झारखंड को ही देखिए , पिछली सरकार २०१५ जब आयी तो ऐसा लग रहा था के आज तक जितनी भी सरकारें झारखंड में आयी वो सारी की सारी नाकारा थी , कमजोर थी और अपना काम करने में विफल थी मगर रघुवर दास बाबू की सरकार , डबल एंजिन की सरकार , पूर्ण बहुमत की सरकार ना के सिर्फ़ अपना कार्यकाल पूरा करेगी बल्के ऐसा लगता था के शायद अब म्यूनिसिपैलिटी के नल्को से पानी की जगह दूध आएगा ? मगर दूध तो दूध ठीक से पानी भी नसीब नही हुआ लोगों को , अंगीनत मासूम मॉब लिंचिंग का शिकार हुए , कुछ ‘ भाथ ‘ कहते कहते भगवान को प्यारे हो गए . आदिवासी बच्चों की फ़ीस बड़ा दी गयी और मिलने वाली स्टाइपंड घटा दी गयी.

अब हेमंत सोरेन की सरकार है , वादे तो इन्होंने भी काफ़ी किए हैं अब देखना ये है अब के वादे पूरे करने की कसौटी पर यह कितना उतरते है…. हमारे पड़ोसी राज्य बिहार में इलेक्शन की धूम मची है और नेयताओं का सीना पीटना शुरू हो गया है, सब भोजपुरी बोलने लगे हैं , मगर ये ख़याल किसी नेता को नही आ रहा के ये वही बिहारी हैं जो दिल्ली से पैदल ,भूके प्यासे, नंगे पैर , तपती धूप में अपने घर के लिए चल दिए थे , ये वही बिहारी है जो हर साल बाढ़ की मार झेलते हैं । नेताओं को बिहारियों का वोट तो प्यारा है मगर बिहारी नही , वरना क्या कारण है के जो काम सरकारों को करना था वो सोनू सूद कर रहे थे ? राजनैतिक दालों को मालूम हो या ना हो मगर हर बिहारी को मालूम है के सुशांत सिंह की मौत दुःख की बात है मगर राजनैतिक मुद्दा नही.

जिस तरह मोदी जी को जनता बोहोत प्यार करती है उसी तरह नीतीश जी को भी बोहोत प्यार करती है , मगर इन नयी परिस्थिति में ये प्यार कितना बना रहता है अब आगे देखना है आसान भाषा में कहें तो देखना है ये ऊँट किस करवट बैठता है.