कोरोना काल में लोगो को रोजगार उपलब्ध कराना झारखंड सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है. लॉकडाउन होने और रोजगार के साधन ठप हो जाने के बाद बड़ी सांख्य में रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेश गए प्रवासी मजदूर राज्य वापस लौटे है.
बड़ी संख्या में राज्य वापस लौटे प्रवासी मजूदरो को रोजगार उपलब्ध कराने की सबसे बड़ी चुनौती राज्य सरकार के पास थी, प्रवासियों को रोजगार देने के लिए राज्य सरकार ने मनरेगा को प्राथमिकता दी और जिले के अधिकारियो से समन्वय स्थापित कर रोजगार उपलब्ध कराने में जुट गए. झारखंड में भी बड़े पैमाने पर मनरेगा से जुड़े कार्य किए जा रहे हैं। लाखों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.
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मनरेगा में कार्य करने वाले मजदूरों की शिकायत रहती थी कि उन्हें जल्द भुगतान नहीं किया जाता है. लेकिन राज्य सरकार की तत्परता से कोरोना काल के दौरान राज्य भर में चल रहे मनरेगा के कार्यो का तेजी से भुगतान किया जा रहा है. अब तक की जो स्थिति है उसके अनुसार, समय पर मनरेगा मजदूरों को मजदूरी भुगतान के लक्ष्य को झारखंड शत-प्रतिशत पूरा कर रहा है।
इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा से जुड़ने वाले और मनरेगा की मजदूरी करने वाले मजदूरों को पूरी मजदूरी मिल चुकी है और उनका किसी तरह का बकाया नहीं है। 98.95 फीसदी राशि खर्च 2020-21 में की गई है। 40 फीसदी राशि 1034.37 करोड़ रुपए सामग्री मद के लिए है।
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मनरेगा में कृषि व उससे जुड़ी गतिविधियों में भी बेहतर खर्च किया जा रहा है। अब तक इन योजनाओं में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 98.95 फीसदी राशि खर्च की गई है। इस मामले में भी झारखंड पूरे देश में पहले नंबर पर है। आईबीएस वर्क (व्यक्तिगत लाभ योजना) के तहत झारखंड की उपलब्धि चालू वित्तीय वर्ष में 91.59 प्रतिशत है। झारखंड में 2020-21 में मनरेगा का कुल बजट 2741.84 करोड़ का है। इसमें से 1552 करोड़ मजदूरी भुगतान और 40 फीसदी सामग्री के लिए है। मनरेगा योजना मिशन मोड पर चलाई जा रही है। लोगों को अपने घर पर ही रोजगार देना सरकार का लक्ष्य है।