रांची: झारखंड की राजनीति में 1000 दिन का कार्यकाल पूरा करने वाली हेमंत सोरेन सरकार दूसरी सरकार बन गयी है. यह उपलब्धि पहले केवल रघुवर दास वाली भाजपा सरकार को थी. इस 1000 दिन या यूं कहें तो भाजपा के 14 साल के शासनकाल में हेमंत सोरेन सरकार के 1000 दिन काफी भारी पड़ा है. इन 1000 दिनों में मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन ने झारखंड में दशकों पुरानी वैसी समस्याओं को खत्म करने का काम किया, जिसके लिए राजनीति दबाव से परे हटकर दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए. वैसी दृढ़ इच्छा शक्ति अगर भाजपा नेताओं या उनके जनजातीय मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा या 1000 दिन पूरा करने का रिकॉर्ड बनाने वाली रघुवर दास में होती, तो शायद यह समस्या आज ऐसी ही नहीं बनी रहती.
दशकों पुरानी समस्याओं में नक्सल, आदिवासियों और ओबीसी वर्ग के अधिकार और स्थानीय नीति हैं शामिल
हेमंत सोरेन के प्रयास से इन तीन सालों में वैसे तो कई समस्याओं का निपटारा हुआ, लेकिन इसमें दशकों पुरानी छह ऐसी समस्याएं हैं, जो एक उपलब्धि से कम नहीं. इसमें सुरक्षा व्यवस्था (नक्सल खात्मा), आदिवासियों और ओबीसी वर्ग के हित और अधिकार, जमींदारी अधिकारों के खात्मे, राज्य के स्थानीय कौन होंगे, आदि समस्याओं का निपटारा शामिल हैं.
जनवरी 2020 से अबतक 40 नए पुलिस कैंप बनाकर चलाया गया अभियान, तीन दशक बाद मुक्त हुआ बूढ़ा पहाड़
हेमंत सरकार जैसी ही सत्ता में आयी, तो नक्सलवाद पर खत्म का मुहिम शुरू हुआ. सबसे पहले टारगेट लातेहार एवं गढ़वा जिले में स्थित बूढ़ा पहाड़ को किया गया. यह पहाड़ नक्सलियों का गढ़ माना जाता था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर जनवरी 2020 से अबतक कुल 40 नए पुलिस कैंप बनाए गए, झारखंड पुलिस द्वारा ऑपरेशन ऑक्टोपस’ चलाया गया, जिसका हश्र यह है कि बूढ़ा पहाड़ को लगभग तीन दशक (32 वर्षों) बाद एक बार फिर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के कब्जे से मुक्त करा लिया. झारखंड पुलिस ने ग्रामीणों को आश्वास्त किया कि अब उन्हें कभी दोबारा नक्सलियों के आतंक के साये में नहीं रहना होगा.
28 साल बाद नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज जन-आंदोलन को हेमंत ने खत्म किया.
इसी तरह तीन दशक से बनी नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की समस्या को भी हेमंत सोरेन ने खत्म किया. करीब एक माह पहले ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फायरिंग रेंज के अवधि विस्तार की अनुमति नहीं दी. नेतरहाट फायरिंग रेंज का काम वर्ष 1964 में शुरू हुआ था. वर्ष 1999 में तत्कालीन बिहार सरकार ने इसे अवधि विस्तार दिया था. तब से नेतरहाट के टुटवापानी में हर वर्ष 22 और 23 मार्च को लातेहार और गुमला जिले के प्रभावित 245 गांव के लाखों ग्रामीण लगातार आंदोलन करते रहें हैं. यानी 28 साल के बाद ग्रामीणों को अपने आंदोलन का रिजल्ट मिला, वह भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कारण.
सीएनटी एक्ट के तहत ली गयी जमीन 22 वर्षों में पहली बार रैयतों को वापस मिली, वह भी दो बार.
राज्य गठन के बाद ऐसा पहली बार हुआ, जब सीएनटी एक्ट के तहत आदिवासियों की ली गयी जमीन को प्राइवेट कंपनी द्वारा वापस लिया गया. वह एक नहीं दो बार. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर सबसे पहले फरवरी 2021 में हजारीबाग जिले के बड़कागांव स्थित पसेरिया मौजा में ज्वाइंट वेंचर की कंपनी रोहाने कोल कंपनी को दी गई करीब 56 एकड़ जमीन 26 रैयतों को लौटायी गयी. फिर सितंबर 2021 को पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में स्थित बिष्टुपुर में 5.63 एकड़ आवंटित जमीन रैयतों को लौटायी गयी. दोनों ही मामलों का निर्देश अनुसूचित जाति-जनजाति व पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ने दिया. बता दें कि सीएनटी एक्ट की धारा 49 (5) में नियम है कि उद्योग के नाम पर ली गयी जमीन पर कंपनी यदि 12 वर्षों तक कोई काम नहीं करती तो उसके वह जमीन रैयत को वापस लौटाना पड़ता है. इस दिशा में भी भाजपा मुख्यमंत्रियों ने कोई पहल नहीं की.
हजारीबाग में एक दशक के बाद लगान रसीद जारी करने का काम शुरू
हजारीबाग नगरपालिका क्षेत्र में एक दशक से लगान रसीद जारी नहीं होने की समस्या को भी हेमंत सोरेन ने निपटारा किया. उन्होंने हजारीबाग नगर पालिका जमींदारी अधिकार को खत्म करते हुए निर्देश दिया कि अब सरकार यहां पर लगान रसीद जारी करेगी. इसे लेकर बिहार भूमि सुधार अधिनियम 1950 के प्रावधान के अनुरूप हेमंत सरकार ने भूमि के अभिलेखों का हस्तांतरण का निर्देश दिया. बता दें कि हजारीबाग शहर की करीब आधी भूमि का राजस्व रसीद हजारीबाग नगरपालिका द्वारा जारी होता था. जिसे बाद में 2011-2012 में रोक लगाया गया. तब से इलाके के लोग जमीन की खरीद-बिक्री, म्यूटेशन, आदि को लेकर लोग कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे थे.
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भले ही 1932 की नीति और ओबीसी आरक्षण चुनावी वादा था, पर था तो झाऱखंडियों के दशकों पुरानी मांग.
इसी तरह मुख्यमंत्री ने अपने चुनावी वादों को पूरा करते हुए दो दशक से चर्चा का केंद्र बिंदु बनी रही स्थानीय नीति और ओबीसी आरक्षण की मांग को पूरा किया. बीते दिनों लिए कैबिनेट की बैठक में 1932 की खतियान आधारित नीति बनाने की दिशा में पहल हुई. इससे झाऱखंड का आदिवासी-मूलवासी के लंबी मांग पूरी हुई. इसी तरह भाजपा नेतृत्व वाली बाबूलाल मरांडी सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 27 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत किया था. उस समय से इसे बढ़ाने की मांग हो रही थी. कैबिनेट की बैठक में आरक्षण को फिर से 27 प्रतिशत करने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिली. दोनों ही नीति पर अब एक-एक विधेयक विधानसभा में लाया जाएगा.
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