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Jharkhand Niyojan Niti: 60-40 पर लोगों को भड़काने वाले ने ही 1932 पर लगवाया हैं रोक

News Desk
Jharkhand Niyojan Niti: 60-40 पर लोगों को भड़काने वाले ने ही 1932 पर लगवाया हैं रोक 1

Jharkhand Niyojan Niti: झारखंड के सियासी आसमान पर छाए अनिश्चिचता के बादलों की घूमक्कड़ी के बीच हेमंत सोरेन सरकार ने मजबूत निर्णयों की बारिश कर रहें है. उन लोगों को झारखंड का स्थायी निवासी माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम साल 1932 या उससे पहले का खतियान है. मतलब अंग्रेज़ी हुकूमत में 1932 तक कराए गए जमीनों के सर्वे सेटलमेंट के दौरान इस इलाके में रह रहे परिवार ही झारखंड के डोमिसाइल (स्थानीय) माने जाएंगे. बशर्ते, केंद्र सरकार इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का राज्य का प्रस्ताव स्वीकार कर ले. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि उनकी सरकार जनता की भलाई के लिए काम करने वाली सरकार है, लिहाज़ा वे मज़बूत निर्णयों को लेने से पीछे नहीं हटेगी.


Niyojan Niti: नई नियोजन नीति में 40 फीसदी सीटों को ओपन फोर ऑल कर दिया गया है। युवाओं को इसकी जानकारी मिलने के बाद राज्यभर से विरोध के स्वर उठने लगे हैं। राज्य के विभिन्न जिलों से विरोध के स्वर अलग-अलग रूप में देखने को मिल रहे हैं। युवाओं कहना है कि आरक्षण की वजह से एक तो सीटें कम हो गई हैं। अब 40 फीसदी सीट में भी ओपन फोर ऑल कर दिया गया है तो इसमें भी बाहरी छात्रों की भागीदारी बढ़ेगी। राज्य के आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को तो फिर भी ठीक है, पर अनारक्षित श्रेणी के लिए अवसर कम होना है। युवाओं ने पलाश के फूल से 40 फीसदी का विरोध किया। युवाओं ने 60:40 नियोजन निति नही चलेगा कहा है। इसके साथ ही युवा ट्विटर पर विरोध करते हुए आंदोलन करेंगे. ट्विटर महाअभियान चलाया जा रहा है। सभी युवाओं से इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की गई है.
हेमंत सोरेन की सरकार ने जिस नियोजन नीति को कैबिनेट से मंजूरी दी। संस्थान से 10वीं-12वीं करने की योग्यता खत्म कर दी गयी है.

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Jharkhand Niyojan Niti: 60 और 40 पर लोगों को भड़का कर भाजपा ने अपनी राजनिति की है ,और उसी ने येन क्रेन तरीके से 1932 पर लगवाया रोक।झारखंड में 1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार मानने की मांग यहां के लोग झारखंड गठन के बाद से ही करते रहे हैं.यहां के आदिवासी और मूलवासी हमेशा से कहते रहे हैं कि झारखंड में बाहर से आकर बसे लोगों ने यहां के स्थानीय बाशिंदों के अधिकारों का अतिक्रमण किया है, उनका शोषण किया है. लिहाज़ा, यहां की स्थानीय नीति 1932 के खतियान के आधार पर बनाई जानी चाहिए.बिरसा जयंती के मौके पर 15 नवंबर 2000 को झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद यहां बीजेपी के नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पहली सरकार का गठन हुआ था.उनकी सरकार ने साल 2002 में यहां की डोमिसाइल पॉलिसी घोषित की थी. उसके तहत भी 1932 के सर्वे सेटलमेंट को स्थानीयता का आधार माना गया था जिसके बाद हिंसा भड़क गई और उस हिंसा में छह लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. तब उनके मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों ने ही उनका विरोध किया और बाद के दिनों में बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.उसके बाद झारखंड हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वी के गुप्ता, जस्टिस गुरुशरण शर्मा, जस्टिस एस जे मुखोपाध्याय, जस्टिस एल उरांव और जस्टिस एम वाइ इकबाल की खंडपीठ ने इससे संबंधित जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सरकार के उस निर्णय पर तत्काल रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने सरकार ने कहा था कि वह अपनी स्थानीय नीति लेकर आए. उसके बाद राज्य में कई सरकारें बनीं, लेकिन किसी सरकार ने स्थानीयता की नीति नहीं बनाई.


सरकारें इसे विवादास्पद मानकर इससे बचती रहीं. लेकिन, साल 2013 में अपने पहले मुख्यमंत्री काल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन ने स्थानीय नीति पर सुझाव देने के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी. हालांकि तब यह नीति नहीं बन सकी. उनके पिता और जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन भी 1932 के खतियान को आधार मानकर स्थानीय नीति बनाए जाने की वकालत करते रहे हैं, लेकिन उनके ख़ुद के मुख्यमंत्री रहते यह नीति नहीं बन सकी.
साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हेमंत सोरेन की सरकार गिर गई और रघुबर दास के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन की सरकार ने कामकाज संभाला.


बीजेपी और सुदेश महतो के नेतृत्व वाली आजसू पार्टी के गठबंधन की रघुबर दास सरकार ने साल 1985 को कट आफ़ मानते हुए स्थानीय नीति की घोषणा की जिसका व्यापक विरोध हुआ. 2019 हेमंत सोरेन फिर से सत्ता में आए और उन्होंने स्थानीय नियोजन नीति बनाई. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नियोजन नीति में किए गए संशोधन को जन भावनाओं के अनुरूप सरकार के द्वारा उठाया गया कदम मान रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस संशोधन से पहले सरकार ने यहां के युवाओं की राय जानी थी, जिसके बाद सरकार ने बेहतर निर्णय लिए हैं. मालूम हो कि राज्य में अब तक तीन बार नियोजन नीति बनी है, जो लगातार हाई कोर्ट के द्वारा और संवैधानिक करार दिए जाने के कारण रद्द होता रहा है. ऐसे में 2021 में बनी हेमंत सरकार की नियोजन नीति को रद्द किए जाने के बाद राज्य सरकार की मजबूरी बन गई कि हाईकोर्ट के निर्देश और सुझाव के अनुरूप झारखंड में नियोजन नीति बने.

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