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Mahatma Gandhi
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Gandhi Jayanthi: बापू का झारखंड से रिश्ता पुराना, राँची में रखी गई थी चंपारण आंदोलन की नींव

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प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है इसी दिन महात्मा गांधी का जन्मदिन है. स्वतंत्रता की लड़ाई में बापू का योग्यदान किसी से छुपा नहीं है स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को खुली चुनौती देकर अहिंसावादी तरीके से भारत को स्वतंत्रता दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही है। आज हम गांधी जयंती के मौके पर बापू के चंपारण आंदोलन को भी याद कर रहे हैं, लेकिन शायद यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि जिस चंपारण आंदोलन को बिहार के नाम से जाना जाता है दरअसल उसकी नींव वर्तमान में झारखंड की राजधानी राँची से रखी गई थी।

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संयुक्त बिहार में झारखंड बिहार का ही हिस्सा था और वर्तमान में झारखंड की राजधानी रांची को ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा प्राप्त था रांची की खूबसूरती और आबोहवा को देखते हुए अंग्रेजों ने इसे सजाया और संवारा तथा अपना एक प्रशासनिक ठिकाना भी बनाया था। कहा जाता है कि कोलकाता के पास होने के कारण सैकड़ों भद्र बंगालियों ने रांची की इस पठार पर अपनी कोठियां खड़ी की थी साथ ही बंगाल से सटे होने के कारण ही अंग्रेजों ने झारखंड की राजधानी रांची को अपना ठिकाना बनाया था। रांची का पहाड़ी मंदिर हिमालय से भी पुराना बताया जाता है ऐसा कहा जाता है कि स्वतंत्रता की बात करने वाले दीवानों को अंग्रेजो के द्वारा इसी पहाड़ी मंदिर पर फांसी दिया जाता था इसलिए इसका नाम फांसी टोंगरी भी पड़ा है। तो वहीं, शहीद चौक के पास भी 1857 के वीरों को फांसी पर लटका दिया गया था उस वक्त रांची काफी छोटी हुई करती थी लेकिन समय के साथ-साथ इसका विस्तार भी होता चला गया।

बापू और राष्ट्रपिता जैसे शब्दों से ताल्लुक रखने वाले मोहनदास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी के कदम झारखंड की धरती पर कई बार पड़े थे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक लंबा कालखंड है जब महात्मा गांधी झारखंड आया करते थे।सन् 1917 से 1940 के बीच करीब 50 से अधिक दिन महात्मा गांधी ने झारखंड में बिताया था कहा जाता है कि 2 जून 1917 को बिहार की राजधानी पटना से चले और 3 को वाराणसी पहुंचे जहां 4 जून को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के दौरान वह बिहार-ओडिशा के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गेट से ऑड्रे हाउस में उन्होंने मुलाकात की। तो वहीं, चंपारण आंदोलन की भी नींव झारखंड की रांची से ही रखी गई थी 24 सितंबर को चंपारण समिति की बैठक रांची में ही हुई थी बैठक काफी लंबी चली और आंदोलन को लेकर भी काफी विचार-विमर्श हुआ 25 जुलाई सन् 1917 को गांधीजी ने लीडर अखबार के संपादक के नाम एक पत्र लिखा था जो रांची से ही लिखा गया था।

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बापू चंपारण आंदोलन के सिलसिले में एक बार फिर पुणे से 18 सितंबर को चले और 22 को रांची पहुंचे थे यहां करीब 24 से 28 तक चंपारण जांच समिति की बैठक में वह शामिल हुए। जिसके बाद 5 अक्टूबर को रांची से पटना चले गए और 25 सितंबर को ही जमुनालाल बजाज को भी पत्र लिखा उसके बाद मगनलाल गांधी को लिखे पत्र में जिक्र किया गया है कि “बुखार से मुक्त नहीं हुआ हूं” बुखार में भी वे चंपारण समिति की बैठक में भाग ले रहे थे एक और पत्र 27 सितंबर को जिए नटेशन को लिखा गया था उसमें भी अंत में लिखा कि मेरे शुगर के कारण आप चिंतित ना हो वह अपने समय से ही जाएगा इस दौरान गांधीजी अक्टूबर के पहले सप्ताह तक रांची में ही रहे।

जिस वक्त चंपारण आंदोलन की रणनीति रांची में गढ़ी जा रही थी उस दौरान उनकी मुलाकात झारखंड के आंदोलनकारी टाना भगतो से हुई थी ऐसा कहा जाता है कि 1914 से टाना भगत धार्मिक पाखंड के साथ अंग्रेजों के लगान के खिलाफ अहिंसक आंदोलन चला रहे थे गांधीजी की उनसे 8 जुलाई 1917 को मुलाकात हुई थी इस बात की जानकारी उनकी डायरी में किए गये उल्लेख से मिलती है।

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ताना भक्तों का जिक्र करते हुए गांधी जी ने अपने डायरी में लिखा था कि “आज मैंने टाना भगत नामक आदिवासी जमात के लोगों से बात की यह अहिंसा और सदाचार को मानने वाले हैं”। महात्मा गांधी के द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन खेलने से पूर्व ही हटाना भक्तों ने अहिंसक लड़ाई छेड़ दी थी परंतु अधिकतम लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है गांधी जी से मिलने के बाद ताना भक्तों ने गांधी पर विश्वास करते हुए उनके पक्के अनुयायी बन गए और खादी को अपना लिया। जिस वक्त गांधीजी झारखंड आ रहे थे उसी दौरान सन 1917 में ही मौलाना आजाद यहां नजरबंद की सजा काट रहे थे वे 4 सालों तक यहां रहे थे परंतु इस बात की जानकारी ना ही किसी किताब में है और ना कोई शिकार इतिहासकार बताते हैं कि उनकी मुलाकात बापू से हुई थी या नहीं?