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भाजपा सदन में तय नहीं कर पा रही प्रतिपक्ष का नेता, भाजपा नाम दे तभी लोकायुक्त और सूचना आयोग बनेगा

झारखंड में संवैधानिक संस्थाएं संकट में हैं. भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाली संस्थाएं दम तोड़ रही हैं. वहीं, ‘सूचना के ‘अधिकार’ के माध्यम से न्याय लेनेवाले दर-दर भटक रहे हैं. इधर, सरकार कह रही है कि भाजपा प्रतिपक्ष का नेता दे, तो इन संस्थाओं का गठन करेंगे.

सरकार ने विधानसभा में कहा है कि हम लोकायुक्त का चयन और सूचना आयोग का गठन नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि मुख्य विरोधी दल के नेता ने प्रतिपक्ष के नेता का नाम नहीं बताया है. इस बाबत सरकार ने विधानसभा को पत्र लिखकर पूछा है कि सदन में प्रतिपक्ष का नेता कौन हैं?

सरकार का कहना है कि संवैधानिक पदों पर चयन और आयोग के गठन के लिए तय समिति है. इसमें मुख्यमंत्री अध्यक्ष होते हैं और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता सदस्य होंगे. तीन सदस्यीय इस कमेटी में मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल से एक नाम का चयन करेंगे. सरकार ने माना है कि राज्य में महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थाओं के पदों पर चयन की प्रक्रिया नहीं पूरी हो पा रही है. इसके लिए मुख्य विरोधी दल के बिना प्रक्रिया पूरी नहीं होगी.

संकट में संवैधानिक संस्थाएं, भ्रष्टाचार का आरोप तो भाजपा लगाती है लेकिन प्रतिपक्ष का नेता तक तय नही कर पा रही है

भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं, न्याय के लिए दर-दर भटक रहे भुक्त भोगी, महिला आयोग भी दम तोड़ रहा
संवैधानिक पदों पर चयन व आयोग गठन के लिए तय समिति में सीएम अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष सदस्य होते हैं।
विधानसभा अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को पत्र लिखकर दल से एक विधायक को नामित करने का आग्रह किया है. सरकार ने सदन में बताया है कि स्पीकर की ओर से मुख्य विरोधी दल को पत्र गया है, लेकिन उस दिशा में कार्रवाई नही हुई.

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जून 2021 से लोकायुक्त की कोई कार्रवाई नहीं दो हजार मामले फंसे।भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करनेवाले बड़ी संस्था के रूप में लोकायुक्त कार्यालय काम करता है. जन 2021 से यहां कामकाज ठप है. लोकायुक्त डीएन उपाध्याय के निधन होने के बाद से ही कोई सुनवाई नहीं हो रही है. लगभग दो वर्षों से भ्रष्टाचार के मामलों पर कोई संज्ञान लेनेवाला नहीं है. सरकार किसी को लोकायुक्त के रूप में नियुक्त नहीं की है. यहां करीब दो हजार मामले लंबित हैं.

राज्य सूचना आयोग करीब तीन वर्षों से ठप है. आयोग में न तो मुख्य सूचना आयुक्त और न ही आयुक्त हैं. मुख्य सूचना आयुक्त मिलाकर यहां आयुक्तों के 11 पद हैं. आयोग में शिकायत और अपीलीय मामले की सुनवाई पूरी तरह से ठप हैं. राज्य के लोग ‘सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी हासिल नहीं कर पा रहे हैं. केंद्रीय कानून के तहत लोगों के अधिकार का दमन है. सूचना आयोग में 20 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं. अपील के मामले हजारों में हैं. सूचना के लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं.

महिला उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनेवाले महिला आयोग में भी ताला लटक रहा है आयोग में न तो अध्यक्ष हैं और न ही सदस्य. न्याय के लिए महिलाएं भटक रही हैं. न्याय की गुहार नहीं लगा पा रही हैं. ऐसे में महिलाओं के मामले में संज्ञान लेनेवाली कोई संवैधानिक संस्था नहीं है. आयोग में अध्यक्ष सहित पांच महिला सदस्यों के पद खाली हैं. आयोग के पास लगभग पांच हजार मामले लंबित हैं।

जनवरी 2020 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के कार्मिक प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों पर नियुक्ति का विज्ञापन निकाला था। करीब 300 आवेदन प्राप्त हुए थे। आवेदन मंगाने के तकरीबन ढाई साल बाद भी नियुक्ति के मुद्दे पर कोई प्रगति नहीं हो पायी है। दरअसल, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए जरूरी तीन सदस्यों वाली चयन समिति में सीएम के अलावा नेता प्रतिपक्ष भी होते हैं। विपक्ष के नेता का पद कानूनी पचड़े में फंसा है। बाबूलाल मरांडी को बीजेपी विधायकों ने अपना नेता तो चुन लिया, लेकिन दल- बदल में उनका मामला फंस गया। स्पीकर ने उनके मामले में अभी तक फैसला नहीं सुनाया है। इस माम को लेकर मरांडी हाईकोर्ट गये हैं। वहां से भी अभी तक फैसला नही आया।