केंद्रीय विधुत मंत्रालय के द्वारा इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 के नाम पर बिजली वितरण का निजीकरण करने के लिए मसौदा तैयार किया गया है. लेकिन इसे लागू करने से पूर्व राज्य सरकारों से सुझाव माँगा गया है. सभी राज्यों से इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संसोधन करने के लिए 17 अप्रैल को जारी मसौदे पर सभी राज्यों और स्टेट होल्डरों से 21 दिनों में जवाब माँगा गया है.
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इस बिल में बिजली वितरण व्यवस्था को डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेंचाइजी को सौंपे जाने के अलावा सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी को खत्म करने की बात है। यह व्यवस्था यदि झारखण्ड में लागू होता है तो बिजली की दर महंगी हो जाएगी। जानकारों के मुताबिक अन्य राज्यो की तुलना में झारखण्ड एक मात्र राज्य है जहां बिजली सस्ती है. सब्सिडी देकर सरकार उपभोक्ताओं को राहत दे रही है। मगर निजी हाथों में जाने के बाद सब्सिडी समाप्त हो जाएगी।
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ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दूबे ने निजीकरण के मसौदा को निराशाजनक बताया है। फेडरेशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसमें हस्तक्षेप कर बिल को कम से कम 30 सितंबर तक बढ़ाने की मांग की है। झारखंड पावर इंजीनियर्स सर्विस एसोसिएशन के महासचिव प्रीतम निशि किड़ो ने भी इस बिल का विरोध करने का निर्णय लिया है और राज्य सरकार से इसे लागू नहीं करने की मांग की है।
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झारखण्ड के लगभग 90 प्रतिशत हिस्सों में बिजली वितरण निगम के द्वारा बिजली की आपूर्ति होती है. जबकि डीवीसी अपने कमांड एरिया में बिजली सप्लाई करता है. वही जमशेदपुर एवं आदित्यपुर में कपंनी एरिया में टाटा और बोकारो कंपनी एरिया में सेल आदि कंपनियों बिजली आपूर्ति करती है.
पूर्व की रघुवर सरकार के दौरान भी झारखण्ड के तीन बड़े शहर धनबाद, रांची और जमशेदपुर की बिजली व्यवस्था को निजी हाथो में सौपने की चर्चा शुरू हुई थी लेकिन सत्ता बदलने के बाद हेमंत सरकार के द्वारा इस पर अभी तक कोई चर्चा नहीं ही पायी है. यदि झारखण्ड की बिजली व्यवस्था निजी हाथो में जाती है तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ग्रामीण इलाको में रहने वालो के ऊपर पड़ेगा।