Jharkhand Politics: झारखंड की राजनीति इन दिनों बड़ी ही तेजी से पानी की तरह हिचकोले खा रही है. एक तरफ भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश नेतृत्व वर्तमान सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और उनके मुखिया हेमंत सोरेन को निशाना बना रही है तो दूसरी तरफ अपनी जन कल्याणकारी योजनाओं के जरिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जनता के दिलों में अमिट छाप छोड़ रहे हैं. इस शह और मात के खेल में कौन किस पर भारी पड़ेगा यह जनता तय करेगी.
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश नेतृत्व हेमंत सोरेन के सामने पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी थी. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा ने कई चुनावी वादों के साथ 5 साल सरकार चलाने का विजन दिखाकर जनता के बीच गई थी लेकिन ना तो जनता ने उनके वादों पर विश्वास किया और ना ही भाजपा को दोबारा सत्ता में आने का मौका दिया है. राज्य की जनता ने युवा नेतृत्व पर अपना भरोसा जताते हुए हेमंत सोरेन को राज्य का बागडोर सौंप दिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया है.
झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद हेमंत सोरेन सरकार को 4 उपचुनाव का सामना करना पड़ा है. इन चारों उपचुनाव में सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके सहयोगी कांग्रेस ने भाजपा को औंधे मुंह गिरा दिया है. दुमका, बेरमो, मधुपुर और मांडर में हुए उपचुनाव के नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि वर्तमान में भाजपा को झारखंड की जनता पसंद नहीं कर रही है. इसके साथ ही भाजपा का प्रदेश नेतृत्व जिनके हाथों में है उन्हें भी जनता पसंद नहीं कर रही है और उन्हें सिरे से नकार रही है.
साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कभी भाजपा को कोसने वाले बाबूलाल मरांडी दोबारा भाजपा में घर वापसी कर चुके हैं. भाजपा में वापसी करने के बाद बाबूलाल मरांडी को ऐसा लगने लगा कि भाजपा में जाने के बाद वह जल्द ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाएंगे परंतु उनका यह सपना टूटता हुआ दिखाई दे रहा है और इस सपने को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तोड़ दिया है. जब से बाबूलाल मरांडी को भाजपा का प्रदेश नेतृत्व सौंपा गया है उसके बाद से राज्य में चार उपचुनाव में भाजपा को करारा शिकस्त मिला है. भाजपा के कई नेता दबी जुबान में इस बात को कहते भी हैं कि बाबूलाल मरांडी के आने से प्रदेश का नेतृत्व कमजोर हुआ है और भाजपा धीरे-धीरे कमजोर होती चली जा रही है. क्योंकि जिस नेता ने 5 साल भाजपा को अस्थाई सरकार दिया उसे ही राज्य से बाहर कर दिया गया है और अब रघुवर दास प्रदेश नेतृत्व में कोई भी हस्तक्षेप नहीं करते हैं. इसी का नतीजा है कि भाजपा बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा, अन्नपूर्णा देवी सहित कई गुटों में बट गई है जिससे पार्टी लगातार कमजोर होती दिखाई दे रही है.
झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद कोरोना महामारी के कारण राज्य की स्थिति चरमरा गई थी. परंतु अब राज्य की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है लेकिन हाल के दिनों में हुई राजनीतिक हलचल ने राज्य के सियासी पारी को बढ़ा दिया है. कांग्रेस पार्टी के 3 विधायकों का बंगाल में पकड़ा जाना और भाजपा का इसमें नाम आना सरकार गिराने की एक सबसे बड़ी पहलू के रूप में देखी जा रही है और यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी कई बार भाजपा पर सरकार गिराने का आरोप लग चुका है. कुछ मीडिया रिपोर्ट की माने तो बंगाल पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 3 विधायकों ने यह कबूल किया है कि उन्होंने हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने के लिए भाजपा के साथ सांठगांठ किया था और भाजपा से करोड़ों रुपए लिए भी थे. हालांकि, इसकी पुष्टि हम नहीं करते हैं. विधायकों द्वारा यह भी कहा गया की कांग्रेस पार्टी के कई विधायक और कुछ मंत्री वर्तमान की हेमंत सोरेन सरकार का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाएगी और बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाएगी. जिसमें उन्हें भी मंत्री पद दिया जाएगा लेकिन इन सबके बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के तेज निगाहों ने उन्हें उनके मंसूबे में कामयाब होने नहीं दिया और राज्य की सत्ता को एक बार फिर से बचाने में कामयाब हुए हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले को लेकर यह साफ कह चुके हैं कि भाजपा को एक आदिवासी नेतृत्व करने वाला युवा पसंद नहीं आ रहा है इसीलिए कई बार सरकार गिराने का प्रयास किया जा चुका है. इसके साथ ही ईडी के द्वारा भी परेशान करने की लगातार कोशिशें की जा रही है. लेकिन हम झुकने वाले नहीं है, ना ही डरने वाले हैं.
झारखंड में कई जनकल्याणकारी योजनाएं चल रही है, जनता को मिल रहा है सीधा लाभ:
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के लोगों को कई जन कल्याणकारी योजनाओं की सौगात दिया है जिसका सीधा लाभ जनता को मिलता दिखाई दे रहा है. बात अगर कोरोना काल की करें तो लोगों के पास खाने-पीने की चीजों की सबसे बड़ी किल्लत को देखा जा रहा था जिसके बाद हेमंत सोरेन ने यह फैसला लिया कि राज्य में जिन जरूरतमंदों के पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी हरा राशन कार्ड के जरिए चावल दिया जाएगा. जिसके बाद चार लाख के करीब हरा राशन कार्ड राज्य के अंदर बनाए गए और सरकार द्वारा मिलने वाली चावल को दिया जाने लगा. इसके साथ ही दूसरे राज्यों से वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों के लिए मनरेगा में काम देने का निर्देश दिया गया. बड़ी संख्या में श्रमिकों ने मनरेगा के तहत कार्य किया और उन्हें समय पर मानदेय का भुगतान भी किया गया. जिससे उन्हें अपने परिवार को चलाने में सुविधा होने लगी.
झारखंड ही पहला ऐसा राज्य बना जो विषम परिस्थितियों में भी अपने मजदूरों को ट्रेन और हवाई जहाज से राज्य वापस लाने का रिकॉर्ड स्थापित किया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश के बाद देश में कोरोना काल के दौरान झारखंड पहला ऐसा राज्य बना जिसने अपने श्रमिकों को ट्रेन से वापस अपने राज्य लेकर आया. वहीं, देश के रेल मंत्री ने इस पहल को देखकर अन्य राज्यों में ट्रेनों से श्रमिकों को लाने की अनुमति दी थी. झारखंड ही पहला ऐसा राज्य है जो अपने श्रमिकों को हवाई जहाज से लेह और लद्दाख से लेकर वापस आई थी और उन्हें राज्य में रोजगार उपलब्ध कराया था.