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सीवरेज ड्रेनेज के नाम पर भाजपा शासन में 105 करोड़ का भ्रष्टाचार!, विदुयत शवदाह ग़ृह भी नहीं, हेमंत सरकार अब इसे करेगी पूरा.

zabazshoaib

Ranchi : राजधानी रांची में सीवरेज ड्रैनेज की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. साल 2006 के बाद से जलजमाव और नालियों की समस्या से निजात दिलाने के नाम पर बनाए जा रहे सीवरेज ड्रेनेज योजना पर करोड़ों रुपए फूंक दिए गए. इस अवधि में झारखंड की बागडोर लंबे समय तक भाजपा के हाथों में रही. पूर्व नगर विकास मंत्री रहे (जो बाद में झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने) रघुवर दास ने सीवरेज ड्रैनेज सिस्टम पर काम शुरू किया. डीपीआर बनाने का जिम्मा सिंगापुर की मैनहर्ट कंपनी को सौंपा गया. कंपनी के बनाए डीपीआर और राजधानी के जोन – वन में हुए अधुरे सीवरेज ड्रैनेज काम से करीब 100 करोड़ रूपए का सीधे-सीधे भ्रष्टाचार हुआ. इसी तरह लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगने वाली भाजपा ने राज्य के प्रमुख नगर निकायों विदुयत शवदाह गृह बनाने की दिशा में भी शायद ही कोई काम किया. अगर किया होता, तो शायद कोरोना महामारी के दौरान शवों के दाह संस्कार में इतनी परेशानी नहीं होती. राज्य की वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार अब इस अधुरे काम को पूरा करेगी. बतौर नगर विकास मंत्री का भी प्रभार संभाल रहे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर काम हो रहा है.

राजधानीवासियों को जल्द मिलेगा बेहतर सीवरेज ड्रैनेज, हेमंत सरकार बनाने जा रही नया डीपीआर:

बात सबसे पहले रांची के सीवरेज ड्रैनेज सिस्टम की. नगर विकास मंत्री हेमंत सोरेन ने फिर से सीवरेज ड्रेनेज के लिए नया डीपीआर बनाने का फैसला किया है. इसका उद्देश्य जल्द से जल्द राजधानीवासियों को बेहतर सीवरेज ड्रैनेज की समस्या से मुक्ति दिलाना है. इसके लिए कंसल्टेंट बहाल किये जाएंगे जो नया डीपीआर बनाएगी. इसपर सरकार 31.16 करोड़ रुपये खर्च करेगी.

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पहले के डीपीआर और अधुरे काम में बहाया गया 105 करोड़ रूपए:

दरअसल 2006 में मैनहर्ट ने जो डीपीआर बनाया, उस पर करीब 21 करोड़ रुपए खर्च हुए. लेकिन यह भी आरोप लगा कि मैनहर्ट को नियम को ताक पर रख कर काम सौंपा गया. भ्रष्टाचार के इस मामले को ही हाल के वर्षों में निर्दलीय विधायक सरयू राय ने अपने लिखे किताब मैनहर्ट में उजागर किया. मैनहर्ट ने सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम को चार फेज और राजधानी को चार जोन में बांटकर काम करने का डीपीआर बनाया. जोन वन में (कुल 9 वार्ड – 1 से 5 और 30 से 33) काम शुरू हुआ. इस काम के लिए ज्योति बिल्डटेक कंपनी का चयन किया गया. 84 करोड़ खर्च कर कंपनी ने आधे-अधुरे तरीके से 113 किमी सीवरेज-ड्रेनेज का ही काम कर पायी. बाद में भाजपा की मेयर आशा लकड़ा द्वारा कंपनी को टर्मिनेट कर दिया. काम बंद हो गया. यानी सीधे-सीधे सीवरेज ड्रैनेज के नाम पर 105 करोड़ पानी की तरह बहाया गया.

16 नगर निकायों में बनाया जा रहा विदुयत शवदाह गृह, खर्च होंगे प्रत्येक में 3 करोड़ रुपए:

बतौर नगर विकास मंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के 16 नगर निकायों में विद्युत शवदाह गृह बनाने का निर्देश दिया है. विभाग की एजेंसी जुड़को द्वारा इसपर तेजी से काम चल रहा है. निकायों में बन रहे इस आधुनिक शवदाह गृह को लेकर जुडको ने डीपीआर तैयार भी किया है. कई निकायों में काम शुरू भी हो गया है. 16 नगर निकायों में बनने वाले प्रत्येक विद्युत शवदाह गृह (जो गैस से संचालित होंगे), में 2.95 करोड़ (करीब 3 करोड़) रुपये खर्च किये जाएंगे. यह शवदाह गृह धनबाद, चास, कोडरमा, सिमडेगा, गिरिडीह, दुमका, जुगसलाई, चतरा, आदित्यपुर, चाईबासा, सरायकेला, लातेहार, चाकुलिया, खूंटी, गुमला और गोड्डा जैसे नगर निकायों में बनाया जायेगा.

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क्यों जरूरी है सीवरेज ड्रैनेज और विद्युत शवदाह गृह:-

स्वच्छता रैकिंग में पड़ रहा असर

राजधानी में एक बेहतर सीवरेज ड्रैनेज की जरूरत इसलिए हैं क्योंकि हर साल मानसून के मौसम में कई इलाकों की सड़क और गलियां पानी से भर जाती है. आवागमन को काफी परेशानी होती है. इससे स्वच्छ भारत रैंकिग प्रतियोगिता में भी असर पड़ता है. इसी समस्या को दूर करने और शहर को खूबसूरत बनाने के उद्देश्य से बेहतर सीवरेज-ड्रेनेज योजना की जरूरत है.

  • भविष्य में कोरोना जैसी समस्या आए, तो शव जलाने में कोई परेशानी नहीं हो साथ ही लकड़ी की बचत हो

कोरोना महामारी के दोनों ही चरण (2020 और विशेष तौर पर 2021) के दौरान संक्रमित शवों को जलाने में प्रशासन को काफी परेशानी झेलनी पड़ी. यह स्थिति रांची सहित कमोवेश सभी जिलों में देखी गयी. पर रांची को इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. भविष्य में इस तरह की समस्या नहीं बने, इसे देखते हुए ही मुख्यमंत्री ने जुड़को को विद्युत शवदाह गृह बनाने का निर्देश दिया है. विद्युत शवदाह गृह बनने से लकड़ी की भी बचत होगी. इससे जगलों में पेड़ों को कम से कम काटा जाएगा. पर्यावरण अनुकूल रहेगा.