Atrocities on Tribals: भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद की शपथ ले ली है. उन्होंने कहा है कि उनका चुना जाना इस बात का प्रमाण है कि इस देश का गरीब भी सपने देख सकता है और वो पूरे हो सकते हैं. 64 वर्षीय मुर्मू ने यह भी कहा कि उनकी उपलब्धि देश के हर गरीब की उपलब्धि है और करोड़ों महिलाओं की काबिलियत का प्रतिबिंब भी है. मुर्मू अभी तक की सबसे युवा राष्ट्रपति है. उन्होंने बताया कि वो देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति हैं जिसका जन्म आजाद भारत में हुआ.
भले ही द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनी है, और भाजपा आदिवासी हितों को साधने के लिए द्रोपति मुर्मू का नाम भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल उलट और गंभीर है. एनसीआरबी 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश में आदिवासियों के साथ सबसे अधिक अत्याचार किया जाता है जबकि मध्य प्रदेश की कुल आबादी का 22% आदिवासी की जनसंख्या राज्य में मौजूद है बावजूद इसके उन पर अत्याचारों का दायरा बढ़ता ही जा रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अलग से आंकड़े इकठ्ठा करता है और ब्यूरो की रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है. मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान कमान संभाल रहे है.
ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3 प्रतिशत का उछाल है. इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए. आदिवासी मध्य प्रदेश की आबादी का करीब 22 प्रतिशत हैं और भाजपा आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ में लगी रहती है. इसके बावजूद आम आदिवासियों को शोषण और अत्याचार से निजात नहीं मिल पा रही है. दो जुलाई को ही मध्य प्रदेश में एक आदिवासी महिला के साथ हुई एक घटना सामने आई. गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी.
पुलिस, अदालतें भी कर रहीं निराश:
एनसीआरबी के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं. जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें कन्विक्शन या सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है. इसका मतलब है आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस की जांच में कमी रह जाती है जिसकी वजह से आरोपितों को सजा नहीं हो पाती. गुना वाले मामले में भी रामप्यारी के पति अर्जुन सहरिया ने आरोप लगाया है कि उन्होंने हमलवारों के खिलाफ पहले भी शिकायत की है लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि दलितों और आदिवासियों के खिलाफ पुलिस के भेदभाव के भी संकेत मिलते हैं. एनसीआरबी के ही आंकड़ों के जेलों में बंद कैदियों में अनुसूचित जनजाति के कैदियों की संख्या भी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में ही है.
2003 से 2018 के बीच गुजरात में दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार 70% बढ़ा:
गुजरात में दलितों पर अत्याचार पिछले दो दशकों में लगातार बढ़ रहे हैं, राज्य में 2003 और 2018 के बीच पंजीकृत मामलों की संख्या में 72 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इन 15 वर्षों में से ग्यारह ( 2003 से 2014) में गुजरात के मुख्यमंत्री थे. 2018 में अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत 1,545 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2003 में राज्य भर में 897 मामले दर्ज किए गए थे। मामलों में इस वृद्धि के खिलाफ, अत्याचार के मामलों में सजा की दर कम है।
2001 से 2016 के दौरान अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत पंजीकृत अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों के प्रकार:
दलितों और आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर टिप्पणी करते हुए, गुजरात में एक दलित कार्यकर्ता कौशिक परमार ने कहा, “जब से गुजरात में मोदी सरकार सत्ता में आई है, दलित पीड़ित हैं और दिन-ब-दिन उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। फिर भी उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है। इसके बजाय वे झूठे आरोपों का सामना कर रहे हैं। भाजपा सरकार दलितों के प्रति प्रेम दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन ऊना हिंसा के पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिला है, जहां चार दलितों को जीप से बांधकर पीटा गया था।
गुजरात में 2001 से 2017 तक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज कुल मामले:
गैर भाजपा शासित आदिवासी बहुल राज्य झारखंड भी है जहां भाजपा की सरकार जाने के बाद आदिवासी, दलित और मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार की घटनाओं में कमी देखी जा सकती है. आदिवासियों, दलितों और मुसलमानों को कई हिंदू संगठनों और सनातन को मानने वाले लोगों के द्वारा लगातार रघुवर दास की सरकार के दौरान मॉब लिंचिंग की घटनाओं को अंजाम दिया गया लेकिन वर्तमान के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कि सरकार ने विधानसभा से मॉब लिंचिंग कानून को पारित कर निचले समाज के लोगों को एक सुरक्षा कवच उपलब्ध कराया है. वहीं, आदिवासियों की सुरक्षा के लिए और उनकी जनसंख्या को सही तौर पर मापने के लिए विधानसभा से सरना आदिवासी धर्म कोड को पारित कर केंद्र सरकार को भेजा है इस पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार को लेना है कि वह आदिवासियों की जनगणना में अलग से धर्म कोड देना चाहती है या नहीं. देश में अब राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला बन चुकी है भाजपा लगातार इस बात को भुनाने की कोशिश कर रही है कि उन्होंने आदिवासियों के हित में एक बड़ा फैसला लिया है और सम्मान देने का कार्य किया है. लेकिन जब तक आदिवासियों को उनका अलग से धर्म कोड नहीं मिलता है तब तक इस बात की कोई आधार नहीं बनती है कि उन्होंने आदिवासियों का सम्मान किया है.