मेरा देश मेरे लिए क्या कर रहा है मेरी सरकार मेरे लिए क्या कर रही है यह सवाल छोड़कर एक सवाल और सोचना होगा और यह सवाल है मैं देश के लिए क्या कर रहा हूं मैं समाज के लिए क्या कर रहा हूं और क्या कर सकता हूं यह सवाल दिमाग में आता है तो जवाब इस तरह आता है मैं तो अकेला हूं अकेला 130 करोड़ की आबादी में क्या कर लूंगा अगर हम थोड़ा बहुत कुछ कर भी लिया तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा कौन सा पहाड़ टूट जाएगा आज बात करेंगे बिहार के गया जिला के अत्रि विधानसभा के गेहलौर घाटी के रहने वाले दशरथ मांझी की उन्होंने अकेले अपने दम पर पहाड़ तोड़कर रास्ता बना दिया।
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ताजमहल VS दशरथ मांझी पथ ।
ताजमहल बनाने में और दशरथ मांझी पथ बनाने में दोनों का 22 साल लगा था दोनों प्रेम का प्रतीक है। फर्क सिर्फ इतना है ताजमहल बनवाने वाला शाहजहां था जिसके एक हुक्म पर तिजोरी खुलती थी और हुक्म होता था और ताजमहल बनाया जा रहा था। दशरथ मांझी इस गरीब को खुद पसीना बहाना था । छेनी हथौड़ी लेकर पहाड़ काटने जाना बिना भूख प्यास की चिंता किए बिना बस एक राह बनानी थी जो कि किसी का प्यार फिर से अधूरा ना रह जाए और आगे से किसी को तकलीफ ना होl दशरथ मांझी को अपनी पत्नी को सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा पाने पर अपनी पत्नी को खोना पड़ा था क्योंकि उनके गांव से शहर का अस्पताल बहुत दूर था एक शॉर्टकट रास्ता था लेकिन उसके पार करने के लिए पहाड़ को उस पार जाना पड़ता था।

360 फुट लंबा 25 फुट गहरे और 30 फुट चौड़ा पहाड़ को तोड़ कर रास्ता बना दिया 80 किलोमीटर की दूरी 13 किलोमीटर की दूरी में तब्दील कर दिया। सच्चे प्यार का मिसाल तो दशरथ मांझी है जिन्होंने अपने प्यार के खातिर विशाल पर्वत को अकेले ही चीर डाला बिना किसी के हाथ काटे अपने आत्मबलपर। एक शायर ने क्या खूब कहा है एक शाहजहां ने बनवाकर हंसी ताजमहल हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
Story: रविकांत कुमार (MR RB)