

झारखंड में स्थानीय नीति का मुद्दा सबसे बड़ा रहा है. स्थानीय नीति कि वजह से ही बीजेपी के वर्तमान विधायक सह राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन राज्य गठन के 20 वर्ष बाद भी स्थानीय नीति परिभाषित नहीं हो सकी है. राज्य में कई सरकारे आई और गई लेकिन स्थानीयता के मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठे रहते थे.
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राज्य में पूर्ण बहुमत कि सरकार बीजेपी ने रघुवर दास के नेतृत्व में चलाई लेकिन वह भी इस काम को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए. नेता प्रतिपक्ष के रूप में हेमंत सोरेन ने स्थानीयता के मुद्दे को खूब भुनाया और इसे चुनावी मुद्दों में शामिल कर लिया. 2019 के विधानसभा चुनाव में जनता ने बीजेपी को अपना समर्थन न देकर हेमंत सोरेन को अपना मुख्यमंत्री चुना. राज्य के 20 वर्षो में 15 वर्षो से अधिक शासन करने वाली पार्टी राज्य के मुद्दों को लेकर जनता के दिलो से दूर नजर आई.
एक बार फिर राज्य में स्थानीयता का मुद्दा गर्म हो गया है. एक तरफ झामुमो के कुछ नेता 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति कि बात करते है तो दूसरी तरफ हेमंत सरकार अपने वादे को पूरा करने के लिए एक कमिटी का गठन कर स्थिति से अवगत होना चाहते है ताकि वक्त रहते फैसले लिए जा सके.
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बीजेपी के प्रदेश महामंत्री सह राज्य सभा सांसद समीर उरावं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लेकर बड़ी बात कह दी है. समीर उरावं ने कहा कि राज्य में जैसे ही कोई चुनाव आता है हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी स्थानीय नीति का राग अलापने लगते है. राज्य में दुमका और बेरमो का उपचुनाव होना है. उपचुनाव को ध्यान में रखकर ही हेमंत सोरेन स्थानीय नीति कि बात कर रहे है. यही वजह है कि झामुमो स्थानीय नीति का मुद्दा उठाकर जनता को गुमराह करने कि कोशिश कर रही है. राज्य सरकार को सदन में बताना चाहिए कि वह किस खतियान पक्षधर है.
आगे समीर उरावं ने कहा कि हेमंत कभी नहीं चाहते कि स्थानीय नीति पर बात हो. यह सिर्फ जनता को गुमराह करना जानते है. पूर्व कि रघुवर सरकार में जब स्थानीय नीति पर चर्चा के लिए कमिटी द्वारा तैयार कि गई रिपोर्ट लाई गई थी उस वक्त नेता प्रतिपक्ष कि हैसियत से इनसे उम्मीद कि गई थी कि इस पर चर्चा करेंगे. लेकिन ऐसा न करके सदन से भाग खड़े हुए. जो दर्शाता है कि यह कभी स्थानीय नीति के पक्ष में नहीं है.




