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1932 Khatiyan Jharkhand: झारखंड के लिए 11 नवंबर इतिहास लिखेगा, क्या 1932 पर हेमंत का साथ देगी भाजपा और आजसू

1932 Khatiyan Jharkhand: झारखंड के लिए 11 नवंबर इतिहास लिखेगा, क्या 1932 पर हेमंत का साथ देगी भाजपा और आजसू 1

1932 Khatiyan Jharkhand: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार 11 नवंबर 2022 को एक नया इतिहास लिखने जा रही है. राज्य बनने के बाद से ही 1932 सर्वे के आधार पर स्थानीयता को लागू करने की मांग होती रही लेकिन राज्य में 15 साल से अधिक सत्ता का सुख भोगने वाली भाजपा और आजसू इसे लागू नहीं कर पाए परन्तु हेमंत सरकार इसे लेकर अडिग रही. यही कारण है की पहले कैबिनेट से इसकी मंजूरी दी और अब विधानसभा से इस प्रस्ताव को पारित किया जायेगा.

प्रस्ताव के मुताबिक़, उन लोगों को झारखंड का स्थायी निवासी माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम साल 1932 या उससे पहले का खतियान है. मतलब अंग्रेज़ी हुकूमत में 1932 तक कराए गए जमीनों के सर्वे सेटलमेंट के दौरान इस इलाके में रह रहे परिवार ही झारखंड के डोमिसाइल (स्थानीय) माने जाएंगे. बशर्ते, केंद्र सरकार इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का राज्य का प्रस्ताव स्वीकार कर ले.

1932 Khatiyan Jharkhand: क्या है 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति

झारखंड में 1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार मानने की मांग यहां के लोग झारखंड गठन के बाद से ही करते रहे हैं. यहां के आदिवासी और मूलवासी हमेशा से कहते रहे हैं कि झारखंड में बाहर से आकर बसे लोगों ने यहां के स्थानीय बाशिंदों के अधिकारों का अतिक्रमण किया है, उनका शोषण किया है. लिहाज़ा, यहां की स्थानीय नीति 1932 के खतियान के आधार पर बनाई जानी चाहिए.

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बिरसा जयंती के मौके पर 15 नवंबर 2000 को झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद यहां बीजेपी के नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पहली सरकार का गठन हुआ था. उनकी सरकार ने साल 2002 में यहां की डोमिसाइल पॉलिसी घोषित की थी. उसके तहत भी 1932 के सर्वे सेटलमेंट को स्थानीयता का आधार माना गया था जिसके बाद हिंसा भड़क गई और उस हिंसा में छह लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. तब उनके मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों ने ही उनका विरोध किया और बाद के दिनों में बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.

साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हेमंत सोरेन की सरकार गिर गई और रघुबर दास के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन की सरकार ने कामकाज संभाला. बीजेपी और सुदेश महतो के नेतृत्व वाली आजसू पार्टी के गठबंधन की रघुबर दास सरकार ने साल 1985 को कट आफ़ डेट मानते हुए स्थानीय नीति की घोषणा की जिसका व्यापक विरोध हुआ. तब भी लोगों ने साल 1932 को कट ऑफ़ मानकर स्थानीय नीति बनाने की अपनी सालों पुरानी मांग दोहराई.

साल 2019 के विधानसभा चुनाव में रघुबर दास ख़ुद का विधानसभा चुनाव हार गए. बीजेपी गठबंधन बहुमत से काफ़ी पीछे रहा. जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन को बहुमत मिला और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नई सरकार बनी.
जेएमएम के नेताओं-कार्यकर्ताओं और स्वयं जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन ने भी 1932 के खतियान के पक्ष में बयान दिए और स्थानीय नीति घोषित करने की मांग की. तबसे यह मामला झारखंड की सियासत का केंद्र बिंदु बन गया.

झारखंड अलग राज्य आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सह वर्तमान सीएम हेमंत सोरेन के पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन लगातार 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की वकालत करते रहे है. इसकी के मद्देनजर तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तमाम चुनौतियों के बावजूद राज्य की जनता के सबसे बड़ी मांग को पूरा करने जा रही है. लेकिन सवाल अब भी वही है की क्या 1985 के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने वाली भाजपा और आजसू पार्टी के नेता हेमंत सोरेन का साथ देंगे. हालाँकि, वो हेमंत के साथ दें या ना यह प्रस्ताव विधानसभा से पारित होगा क्यूंकि हेमन्त के पास प्रयाप्त बहुत है.

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