नियमावली में संशोधन से पूर्व यह कहा गया था कि जंगलों में उपजने वाली बांस पर भी शुल्क लगेगा परंतु नियमावली में संशोधन होने के बाद वन विभाग ने बांस पर लगने वाले परिवहन शुल्क को वापस ले लिया है। विभाग ने बांस को वन उपज नहीं माना है साथ ही विभागीय सचिव के द्वारा यह कहा गया है कि अभी खनन करने वाली कंपनियां खान विभाग के पोर्टल के माध्यम से टैक्स या अन्य शुल्क देती है इसी पोर्टल का उपयोग वन विभाग का सकता है इसी में एक वन विभाग का परिवहन शुल्क का भी प्रवधान रहेगा जिससे खनन कंपनियों को परेशानी नहीं होगी एक ही पोर्टल से सभी प्रकार के शुल्क का भुगतान कर सहमति पत्र प्राप्त कर सकेंगे
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खनन कंपनियों को देना होगा परिवहन शुल्क:
ऐसा पहली बार हो रहा है कि वन विभाग के द्वारा संसाधनों का उपयोग करने वाली एजेंसियों पर परिवहन शुल्क लगाने का प्रावधान किया गया है. खनन की प्रक्रिया अत्यधिक वन क्षेत्रों में होती है इसी वजह से वन विभाग को इससे बेहतर राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है. झारखंड में कई तरह के खनिज संपदा का भंडार है। राज्य में सबसे अधिक कोयला और आयरन के लिए कंपनियां खनन का कार्य करती है जिस वजह से या अनुमान लगाया जा रहा है कि सबसे अधिक शुल्क कोयला और आयरन निकालने वाली कंपनियों द्वारा प्राप्त होगा कोयला कंपनियों द्वारा यदि गैर वन भूमि में खनन किया जाएगा वहां भी खनन करने पर शुल्क का प्रावधान किया गया है.
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इस विषय पर विभागीय सचिव ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कोयले को वन का बी प्रोडक्ट माना है। कोयले का निर्माण वनों से ही हुआ है इस कारण कोयले का खनन करने वाली कंपनियों को अधिक शुल्क देना होगा। बता दें कि झारखंड में कई कोयला कंपनियां हैं जो खनन करके कोयला निकालने का कार्य करती है इनमें बीसीसीएल सीसीएल और ईसीएल जैसी कंपनिया है साथ ही कुछ निजी कंपनियां भी खनन का कार्य करती है।