झारखंड के मुख्यमंत्री सह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन आज 45 वर्ष के हो चुके है. हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त 1975 को जिला रामगढ में हुआ था. हेमंत सोरेन का मुख्यमंत्री के रूप में यह दूसरा कार्यकाल है. इससे पहले वे 2013 में मुख्यमंत्री बने थे.
कौन है हेमंत सोरेन, झारखंड से क्या है उनका नाता:
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के राजनितिक जीवन की कहानी बड़ी ही रोचक और दुःख भी है. दरअसल हेमंत सोरेन की राजनीति में इंट्री वर्ष 2009 में हुई है. और वो भी ऐसे हालात में जब उनके परिवार के ऊपर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा था. हेमंत सोरेन झामुमो के सुप्रीमो सह झारखंड अलग आंदोलन में अग्रिम भूमिका निभाने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पुत्र है. हेमंत सोरेन की राजनीति में एंट्री एक्सीडेंटल स्टोरी रही है. ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्यूंकि हेमंत सोरेन के बड़े भाई दुर्गा सोरेन जो की जमा विधानसभा से विधायक थे उनकी मौत हो गई थी और उनकी मौत के बाद ही उन्हें मजबूरन राजनीती में आना पड़ा. बताया जाता है की जिस वक्त हेमंत के बड़े भाई दुर्गा सोरेन का निधन हुआ था उस वक्त से शिबू सोरेन की तबियत ठीक नहीं रह रही है जिस कारण हेमंत को राजनीती में एंट्री मारनी पड़ी.
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कुछ ऐसा रहा है हेमंत सोरेन का राजनितिक सफर:
यूँ तो हेमंत सोरेन के जीवन में राजनीति की सफर साल 2003 से शुरू हुआ लेकिन कामयाबी 2009 में मिली। राजनीति में कदम रखने से पहले हेमंत सोरेन इंजीनियरिंग के छात्र थे और बीआईटी मेसरा से अपनी पढाई कर रहे थे. वर्ष 2005 में हेमंत सोरेन ने अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था. 2005 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन दुमका से झामुमो के प्रत्याशी थे. लेकिन शिबू सोरेन के साथ और उस वक्त झामुमो से अलग होकर चुनाव लड़ रहे स्टीफन मरांडी से हार का मुँह देखना पड़ा था.
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2009 में हेमंत के बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत हो गई जिसके बाद हेमंत सोरेन ने इस साल हुए विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे। जिस वक्त हेमंत सोरेन ने अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था उस समय हेमंत सोरेन राज्यसभा के सांसद थे. विधानसभा चुनाव जितने के बाद हेमंत सोरेन ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था. हेमंत सोरेन के राजनितिक जीवन के लिए टर्निग पॉइंट वो रहा जब राज्य में बीजेपी और झामुमो गठबंधन कि सरकार बनी. वर्ष 2010 में बने अर्जुन मुंडा की सरकार में हेमंत सोरेन उपमुख्यमंत्री थे. जहाँ से उनके राजनितिक जीवन की असल शरुआत हुई.
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हेमंत सोरन अपने राजनितिक सूझ बुझ कि परीक्षा में तब पास हुए जब बीजेपी से अलग होकर वर्ष 2013 में कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की कवायद शुरू की और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली। हेमंत के राजनितिक सूझबूझ का ही नतीजा था कि वर्ष 2013 के जनवरी माह में बीजेपी से अलग होने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा और फिर हेमंत कांग्रेस का रुख अपनी ओर मोड़ने में कामयाब हुए. हेमंत सोरेन ने कांग्रेस-राजद और झामुमो के गठबंधन की कमान संभाली और 2013 के जुलाई में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने. राज्य में 14 महीने की सरकार चलाने के बाद उन्हें अंदाजा हो चूका था कि को किस तरह से संभालना है.
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2014 में बने नेता प्रतिपक्ष, और बढ़ी राजनितिक कद:
राज्य की पूर्व रघुवर सरकार के दौरान झामुमो बीजेपी के बाद सबसे बड़ी पार्टी थी इस लिहाजे से झामुमो के कोटे से नेता प्रतिपक्ष का उम्मीदवार होना था. वस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के सामने हेमंत सोरेन को नेता प्रतिपक्ष चुना गया. रघुवर सरकार के दौरान हेमंत सोरेन के आक्रामक तेवर ने उन्हें राज्य में और प्रभावशाली नेता के रूप में पहचान दिलाई। पूर्व कि रघुवर दास सरकार में CNT/SPT का मुद्दा इतना गर्म हुआ कि चारो तरफ इसका विरोध शुरू हो गया. नेता प्रतिपक्ष होने के कारण हेमंत ने भी इस मुद्दे पर मुखर होकर सरकार का विरोध किया।
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हेमंत सोरेन के विरोधी तेवर को देखते हुए राज्य की जनता को लगने लगा कि बीजेपी के सामने अगर कोई नेता मुखर होकर बातें रख सकता है तो वो हेमंत सोरेन ही है. बीजेपी के 2014-2019 के शासनकाल में हुए विभिन्न आंदोलनों ने हेमंत सोरेन के राजनितिक कद को बढ़ा दिया। इसी का नतीजा था की 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद को बड़ी सफलता मिली और 29 दिसंबर 2019 को हेमंत सोरेन ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद कि शपथ ली.